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________________ (३१) खोलाना, मनकी बाते पूछनी और कहनी, और अच्छी वस्तु जरुरत हो तो देनी और लेनी ये छः मित्रताके लक्षण है. ५९ किसीकाभी अपमान नहि करना, मान मनुप्यको बहोतही प्यारा लगता है. मानभंग--अपमानसे मनुप्यको मरणके समान दुःख होता है. यह वार्ता बहोत करके हरएक जनको अनुभव सिद्ध हो चूकी होगी. कीसीकाभी अपमान न करते तिनका मीठे वचनादिसे सन्मान करनेसे अपनेको और दुस२को लाभ होनेका सभव है. गुन्हागार मनुष्यकी भी अपभ्रछना करने करते तो मीठे मधुर वचनसे यदि तिनको तिनके दोषका स्वरूप पहिले अच्छे प्रकारसे समझाया जाय तो बहोत करके पुनः अपराध गुन्हा करना छोड देता है. मृदुता यह ऐसी तो अजब चीज है कि तिनसे वज़ जैसा मान अहंकारभी पिगल जाता है. यह प्रभाव विनय गुणका है, वास्ते दूसरे निको लाखो उपाय छोडकर यह अजब गुणकाही घटित उपयोग करना दुरुस्त है. ऐसा करनेसे अपना कार्य बहोत स्हेलाइसे पार हो सकता है. ६० अपने गुणोंकाभी गर्व नहि करना, ___ उत्तराम जन गर्व नहि करते है सो ऐसा समझकर नहि करते है कि गर्व करनेसे गुणकी हानि होती है. संपूर्ण गुणवंत, ज्ञानी, ध्यानी वा मौनी समुद्रकी तरह गंभीरतावत होनेसे गर्व नहि करते है. फक्त अपूर्ण जन होते है सोही अपनी अपूर्णता जाहीर करते है. अपनी बडाइ करनेसे परनिंदाका प्रसंग सहजहीमें आ जाता है. परनिंदाके बडे पापसे गर्व गुमान करनेवालेका आत्मा लिप्त होकर मलीन होता है. जिस्से मिले हुवे गुणोंकीभी हानि होती है, तो नये गुणों की प्रातिके लिये तो कहनाही क्या ? ( जहां गाठकी मंडी भी गुम जाती है तो नया लाभ होनेकी आशाही कहासे होय !)
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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