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________________ ( ३० ) भूषण नहि है. वार बने जहांतक तिस वातसे दूर रहेना. और परका मंत्रभेद करना नहि -- कीसीका भेद कीसीको कहेना नहि. और गुप्त बात जहा चलती हो वहा खडा रहेना नहि, ५६ दुसरे पीरायेके घर अकेला नहि जाना. यह शिष्ट नीति अनुसरनेमें अनेक फायदे है. इसे शीलवतका શીવ્રતા संरक्षण होता है, सिरपर झुठा कलक नहि चडता है; यावत् ; यावत् मर्यादाशील गिनाकर लोगो में अच्छा विश्वासपात्र होता है. ५७ कीइ हुइ प्रतीज्ञा पालन करनी. अव्वल तो प्रतिज्ञा करनेकी वख्तही पूर्ण विचार कर अपने से अव्वलसे आखिरतक निभाव हो सके वैसीही योग्य ( बन सके वैसी ) प्रतिज्ञा करनी चाहिये. और कभी उत्तम जनने प्रतिज्ञा करली तो योग्य प्रतिज्ञाका प्रयत्नपूर्वक पालन करना. - नाकमै दम आ जानेतकभी खंडित नहि करनी. विचार करके समजपूर्वक की हुई लायक प्रतिज्ञा सोही सत्य और शुभ प्रतिज्ञा गिनी जाति है. तैसी તેની -सत्य और शुभ प्रतिज्ञासे भ्रष्ट हुए मनुष्य अपनी प्रतिष्ठाको खोकर अपवाद के पात्र होता है. अविवेक न होने पावे ऐसी हरदम फिकर जरुर रखनी योग्य है. योग्य विचारपूर्वक की हुइ प्रतिज्ञा प्राणकी तरह पालनी ये दरेक विचारशील सुमनुप्यकी फर्ज है. सच्चे सत्ववत पुरुष तो स्वप्रतिज्ञाको प्राणसेमी ज्यादा प्रिय गिनकर पूर्ण उत्साह से पालन करते है. फक्त निर्बल मनके कायर डरपोक मनुष्यही प्रतिज्ञा खोकर पत गुमाते है. ५८ दोस्तदारो छुपी वात न रखनी. जिस मित्र के साथ कायम दोस्ती रखनेकी चाहना हो तो तिनसे कुच्छमी पटंतर- भेद जुदाइ नहि रखनी खाना और
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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