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________________ (२३) રૂ૮ વોરા વહાના નહિ. कलह वो केवल दुःखकाही भूल है. जिस मकानमें हमेशा कलह होता है तिस मकान मेंसे लक्ष्मीभी पलायमान हो जाती है। वास्ते बन __ आवे तहतक तो क्लेश होने देनाही नहि, यु करते परभी यदि पलेश हो गया तो उनको बढने न देते खतम-शमन कर देना. छोटा बडे के पास क्षमा मागे ऐसी नीति है; मगर कभी छोटा अपना गुमान छोडकर बडेके अगाडी क्षमा न मंगे तो बडा आप चला जाकर छोटेको खमावे जिस्से छोटको शरमींद। होकर अवश्य खमना और खमानाही पडे. क्लेशको बंध करने के लिये 'क्षमापना' खमतखामनरुप जिनशासनकी नीति अत्युत्तम है. जो महाशय वो माफिक वर्तन रखता है तिनको यहां __ और दूसरे लोकममी सुखकी प्राप्ति होती है. और जो इसे विरुद्ध वर्तन चला रहे है तिनको सब लोकमे दुःखही है. ३९ कुसंग नहि करना. जैसा सग हो पैसाही रंग लगता है.' इस न्यायसें नाचकी सोबत या बूरी आदतवाले लोगोकी सोबत करनेसें हीनपन आता है. और उत्तमकी सोबतसे उत्तमता प्राप्त होती है. क्या देवनदी गंगाका शुद्ध मीठा पानीभी खारे समुद्रामें मिलजानेसे खारा नहि होता है ? अवश्य होता है ! तसेही अन्य अपवित्र स्थलसे आया हुवा पानी गंगाका पवित्र जलमें मिलने से क्या गंगाजळके माहास्यको प्राप्त नहि करता है ? अलबत्त, वो गटरका जल हो तो भी गंग समागमसे गंगजलही हो जाता है ! ऐसा संगति महात्म्य समझकर श्याने मनुष्यको सर्वथा कुसंग छोड देकर हर हमेशा सुसंगतिही करनी योग्य है; क्योंकि 'हानि कुसंग सुसंगति लाहु' कुसंगतिमें हानी और सुसंगतिमें लाभ ही मिलता है !'
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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