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________________ (२४) ४० बालकसेभी हित वचन अंगीकार करना. ___ रत्नादि सार वस्तुओकी तरह हितवचन चाहे वहासे अंगीकार करना यही विवेकवंतका लक्षण है. ज्ञानी पुरुष गुणोकीही मुख्यता मानते है. अवस्थासे लघु होने परभी सद्गुण गरीष्ठको गुरु मानते है, और वयोवृद्धको गुणरिक्त होनेसें बालकवत् मानते-गिनते है. ऐसा समझकर विवेकी सज्जन गुणमात्र ग्रहण करनेको सदैव अभिमुख रहेते है. ४१ अन्यायसे निवर्तन होना. समवुद्धि धारण कर राग रोष छोडकर सर्वत्र निष्पक्षपाततासे पर्तन। यही सद्बुद्धि प्राप्त होनेका उत्तम फल है, ऐसा समझकर सत्यपक्ष स्वीकारना सोही परमार्थ है. ऐसा वर्ताव चलानेमेंही तत्वसे स्वपरहित रहा है. लोकापवादकामी परिहार और शासनोन्नति इसी प्रकारसे हांसिल की जाती है. स्वल्पमें निडरतासे सच्ची हिम्मत पूर्वक न्याय मार्ग अंगीकार किये बिगर जीवकी कवीभी मुक्तता होतीही नहि. ऐसा समझकर श्याने जनको सर्वथा न्यायकाही शरण लेना उचित है. नाकम दम आ जाने तकभी अनीतिका मार्ग स्वीकारना अयोग्य है. ४२ वैभवक वस्त खुमारी नहि रखनी. ___ पूर्व पुण्य योगसें संपत्ति प्राप्त हुइ हो, तो संपत्तिके वख्त अहंकारी न होते न होना सोही अधिक शोभारुप है. क्या आम्रादि वृक्ष भी फल प्राप्तिके पस्त विशेष नम्रता सेवन नहि करते है ? वेशक नम्र होते है ! वास्त सपत्तिक वस्त नम्र होनाही योग्य है. नही कि स्वच्छंदी बनकर मदमें खीचाकर तुंग मिजाजी होना. संपत्ति के समय मदांध होना यह बड़ा विपत्तिकाही चिन्ह है! .
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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