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________________ (२१.) छोडकर हरएक मुमुक्षुको उत्तम साहसीकता धारण करनी ही श्रेष्ठ है. ऐसा करनेसे सब मलीनता दूर होकर स्व पर हितद्वारा शासनोन्नति होने पावे. अहो ! कब प्राणी कायरता छोडकर उत्तम साहसीकता आदरंगे और उस द्वारा स्व परकी उन्नति साधकर कब परमानंद पद प्राप्त करेंगे ! ! तथास्तु. ३३ आपत्ति वस्तभी हिम्मत रखकर रहना... ___ कष्टके समयमी नाहिम्मत होना नहि. जो महाशय धैर्य धारण करके संकट के सामने अड जाते है अर्थात् वो वख्त प्राप्त होनेपरभी उत्तम मर्यादा उल्लंघते नहि; मगर उलटे उत्तम नीतिके 'धोरणको अवलंबन करके रहेते है, तिन्हको आपत्तिभी संपतिरूप होती है. शत्रुभी चरा होता है. वो धर्मराजा की मुवाफिक अक्षय कीर्ति स्थापन करके श्रेष्ठ गति साधन करते है; परंतु जो मनुष्य वैसे परतमें हिम्मत हारकर अपनी मर्यादा उल्लघन करके अकार्य सेवनकर मलीनताका पोषन करता है, वो इस जगतमभी निंदापात्र हो पापसें लिप्त हो परत्रभी अति दुःखपात्र होता है. ३४ प्राणात तकभी स.गार्गका त्याग करना नहि. ___ ज्यों ज्यों विवेकी सज्जनोको कष्ट पडता है त्या त्यों सुवर्ण, चंदन और उस ( गन्ने ) की तरह उत्तम वर्ण, उत्तम सुगंधि और उत्तम रस अर्पण करते है; परंतु उन्होको प्रकृति विकृति होकर लोकापवाद के पात्र नहि होती है. ऐसी कठीन करणी करके उत्तम यश उपार्जन कर वो अंतमें सद्गतिगामी होते है. ३५ वैभव क्षय होजानेपरभी यथोचित दान करना. ___चंचल लक्ष्मी अपनी आदत सार्थक करनेको कदाचित् सटक जाय तोभी दानव्यसनी जन थोडेसे थोडा देनेका शुभ अभ्यास
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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