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________________ (२०) संरक्षण करना और स्वार्थभोग चाहे इतना नुकसान हो जाता हो तथापि अदल इन्साफ देना. इत्यादि सद्गुण सत्वपंत सज्जनोमें स्वाभाविकही होते है. और ऐसे ही उत्तम जन धर्मके सत्य-सच्चे अधिकारी है. तैसे विवेकी हंसही सब मलीनता रहित निर्मल पक्ष मजकर धर्म मार्ग दीपानेके वास्ते समर्थ होते है. वैसे सत्य पुरुषोकोही अनंतानंत धन्यवाद है, जो सच्चा पुरुषार्थ स्फुरायके अपना पुरुष नाम सार्थक करते है, तिनकाही उज्वल कीर्ति होती है, या निर्मल यशभी तिनकाही दिगंतमें फैलता है. जो महाशय अचल होकर ऐसी उत्तम मर्यादा सदैव पालते है वो प्रसन्नतासे पवित्र नीतिको अनुसरके अत्र अक्षय कीर्ति स्थापित कर. परत्र अवश्य सद्गति गामी होते है. तैसे साहसीक शिरोमणिकाही जन्म सार्थक है. तैसा उत्तम सात्विक साहसीक सिवा स्व जन्म निष्फल है. सच्चे सर्वज्ञ पुत्र उत्तम प्रकारकी शुद्ध साहसीक वृत्तिसाहितही होते है. वो लखो आश्रितोके आधाररूप है. तिनको सिह किशोरकी तरह साहसीकता धारण करनीही घटित है. तिनकी आबादीके उपर __ लखो मनुष्योके भविष्यका आधार है. समझकर सुखस निर्वहन हो सके तैसी महाव्रत आचरनेरुप-महा प्रतिज्ञा करके तिनका अखंड निर्वाह करना वोही उत्तम साहसीकता है. पोही महान् प्रतिज्ञाका ' स्वच्छंद आचरणोसे भंग करने के समान एकनी दुसरी कायरता है ही नहि. यह दुःख - दावानलसे तैसे प्रतिज्ञाम्रष्टकी मुक्ति हो सकती नहि, ऐसा समझकर-तेल पात्रधार ' या राधावेध साधनेवालाकी' तरह अप्रमत्त होकर सर्वज्ञ प्ररुपित तत्वरहस्य प्राप्त करके अंगीकार की हइ महा प्रतिज्ञाको अखंड पालन करे, वो पूर्ण प्रतिज्ञावंत होके अपना और दुसरेका नितार करनेमें समर्थ होता है. वोही सच्चे साहसीक गिनाये जाते है. वास्ते स्व परकोडुबानेवाली कायरता
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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