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________________ ( १९) विवेक बुद्धिशालीको अवश्य करना कि जिसे स्वपरको अत्र समाधि पूर्वक धर्माराधनसे परत्र-परलोकमें भी सखसंपत्ति होता है, सोही बुद्धि प्राप्तिका शुभ फल है. ३० अकार्य कबीभी करना नहि. - प्राणतितक भी नहीं करने योग्य नि कार्य सज्जन जन करतही नही है, जो लोग प्रमाद पश होकर (परवशतासे ) लोग विरुद्ध वा धर्म विरुद्ध अति निधर्म करे उन्होको सज्जनोकी पंक्तिसे बहार ही गिनने चाहिये. गुण दोष, लाभालाभ, कृत्या कृत्य, उचितानुचित, भक्ष्यामक्ष्य, पेयापेय वगैर। उचित विवकविकल मनुष्यको पशुवत् समझना और उचित विवक पूर्वक सदैव शुभकायोंके सेवनमें उद्यमशील मनुष्यको, एक अमूल्य हीरेके समानही जानना. ऐसे जनोका जन्मभी सार्थक है. ३१ लोकापवाद प्रवर्तन हो वैसा नहि वर्तना, , ___ जिस कार्यसे लोगोमें लघुता हो वैसा कार्य बिना सोचे-विचारे ( अघटित कार्य ) करना नहि जिस्से धर्मको लाछन लगे-धर्मकी हीलना-निंदा हो शासनकी लंबुता हो तैसा कार्य भवभीरु जनोको प्राणांत तकभी नहि करना चाहिये पूर्व महान् पुरुषोके सदूपतनकी तर्फ लक्ष रखकर जिस प्रकारसे अपनी या दूसरेकीयावत् जिनशासनकी उन्नति हो उस प्रकारसे विवेकसे वर्तना. 'लोग विरुद्ध चाओ' यह सूत्रवाक्य कदापि भूल नहि जाना. जिसे सब सुख साधनेका शुभ मनोरथ कबीभी फलीभूत होय वैसे समालकर चलना सोही सर्वोत्तम है.. ३२ साहसीकपना कबीभी त्याग देना नहि. . आपत्तिको समय धैर्य, संपत्ति के समय क्षमा, समाकी अंदर सत्य बार्ता निर्भय होकर कहनी, शरणागतका सब प्रकारसे शक्ति मुजब
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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