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________________ ( ७ ) सुगंधी देता है. वैसेही उपकारी जन जगत्मात्रका उपकार करता जो अपकार करनेवाले परभी उपकार करे सोही जगत्में बड़ा गिना जाता है. १६ उपकारीका उपकार कभी भूलना नहि. कृतज्ञ जन किये हुवे उपकारको कबभी नहि भूलता है. और जो मनुष्य किये हुवे उपकारको भूल जाता है वो कृतघ्न कहा जाता है. और इरसे भी जो जन उपकारीका अहित करनेको इच्छे वो तो महान् कृतघ्न जानना, माता, पिता, स्वामी और धर्मगुरुके उपकारका बदला दे सके ऐसा नहि है. तथापि कृतज्ञ मनुष्य तिन्होकी बन सके जितनी अनुकूलता संभालकर तिन्हके धर्मकार्यमें सहायभूत होनेके लिये ठीक ठीक प्रयत्न करे तो कदापि अनृणी हो सकता है. सत्य सर्वज्ञ भाषित धर्मकी प्राप्ति कराने वाले धर्मगुरुका उपकार सर्वोत्कृष्ट है. ऐसा समझकर सुविनीत शिष्य तिन्हकी पवित्र आज्ञामे वर्त्तनेके लिये पूर्ण खंत रखता है, और यह फरमानसे विरुद्ध वर्त्तन चलानेवाले गुरुद्रोही महापातकी गिने जाते है. ૭ અનાથો ચોગ્ય આશ્રય તેના. अपनी आजीविका के विषे जिन्हें को कुछमी साधन नहि है जो केवल निराधार है. ऐसे अशक्त अनाथको यथायोग्य आलंवन - आधार - आश्रय देना यह हर एक शक्तिवंत धनाढ्य दानी मनुष्योंकी खास फरज है. दु:खी होते हुवे दनि जनोंका दुःख दिलमें वारण करके तिन्होको वख्तके उपर विवेकपूर्वक मदद देनेवाले समयको अनुसरके महान् पुण्य उपार्जन करते है. और तिन्ह के पुण्यबल से लक्ष्मीमी अखूट रहेती हैं. कुएके पानी की तराह बडी उदारता से व्यय की हुइ हो तोभी उदारताकी लक्ष्मी पुण्यरूपी अविच्छिन्न जल प्रवाह की मदद से फिर पूर्ण हो जाती है. तदपि -
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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