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________________ (१२३) तेरे पिताने कहा था कि ( १ ) दांतो द्वारा वाड करना; सो दातों पर सुवर्णकी रेखा वांधने के लिये नही, परंतु इससे उन्होने तुझे यह सूचित किया था कि सब लोगोंके साथ प्रिय, हितकर योग्य वचनसे बोलना, जिससे सब लोक तेरे हितकारी हो. (२) लाभके लिये दूसरोंको धन देकर वापिस न मांगना, सो कुछ भिखारी याचक सगे संबधियोको दे डालनेके लिये नही बतलाया. परंत इसका आशय यह है कि अधिक कीमती गहने व्याज पे रख कर इतना धन देना कि वह स्वयं ही घर बैठे विना मागे पीछे दे जाय. (३) स्त्रीको वांध कर मारना सो स्त्रीको मारनेके लिये नहीं कहो था परतु जब उसे लडका लडकी हो तब फिर कारण पडे तो पीटना परंतु इससे पहेले न मारना. क्यो कि ऐसा करनेसे पीहरमें चली जाय या अपघात करले या लोगोमें हास्य होने लायक बनाव बन जाय. ( ४ ) मीठा भोजन करना, सो कुछ प्रतिदिन मिष्ट भोजन बनाकर खाने के लिये नही कहा था, क्योंकि वैसा करनेसे तो थोडें ही समयमें धन भी समाप्त हो जाय और बीमार होनेका भी प्रसंग आवे. परंतु इसका भावार्थ यह था कि जहा आपना आदर बहुमान हो वहां भोजन करना क्योकि भोजनमे आदर ही मिठास है अथवा संपूर्ण भूख लगे तब ही भोजन करना. विना इच्छा भोजन करनेसे अजीर्ण रोगकी वृद्धि होती है. (५) सुख करके सोना सो प्रतिदिन सो जानेके लिये नही कहा था परतु निर्भय स्थानमें ही आकर सोना. जहां तहा जिस तिसके घर न सोना. जागृत रहनेसे बहुत लाभ होते है. संपूर्ण निद्रा आवे तव ही शथ्यापर सोने के लिये जाना क्योकि, आंखोंमें निद्रा आये बिना सोनेसे कदाचित् मन चिंतामें लग जाय तो फिर निद्रा आना मुस्किल होता है, और चिंता करनेसे शरीर व्यथित हो दुर्बल होता है, इस
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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