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________________ (१२२) दसनर-सगे संवाधियो वाले शुद्ध कुलकी नंदीवर्धन शेठकी कन्यासे उसका बडे महोत्सबके साथ विवाह किया गया. अब उसे बहुत दफा व्यवहार संबंधी ज्ञान सिखलाते हये भी वह ध्यान नहीं देता, इससे उसके पिताने अपनी अंतिम अवस्थामें मृत्यु समय गुप्त अर्थ वाली नीचे मुजब उसे शिक्षायें दी. (१) सब तरफ दाता द्वारा वाड करना. (२) खानेके लिये दूसरोंको धन देकर वापिस न मागना, (३) अपनी स्त्रीको बांधकर मारना, ( ४ ) मीठा ही भोजन करना. (५) सुख करके ही सोना, (६) हरएक गांवमें घर करना. (७) दुःख पड़ने पर गंगा किनारा खोदना. ये सात शिक्षायें देकर कहा कि, यदि इसमें तुझे शंका पडे तो पाटलीपुर नगरमें रहनेवाले मेरे मित्र सोमदत्त शेठको पूछना. इत्यादि शिक्षा देकर शेठ स्वर्ग सिधारे. परंतु वह मुग्ध उन सातो हितशिक्षाओं का सत्य अर्थ कुछ भी न समझ सका, जिससे उसने शिक्षओंके शद्धार्थके अनुसार किया, इससे अंतमें उसके पास जितना धन था सो सब खो बैठा. अब वह दुःखित हो खेद करने लगा. मुर्खाईपुर्ण आचरणसे स्त्रीको भी अप्रिय लगने लगा. तथा हरएक प्रकारसे हरकत भोगने लगा, इस कारण वह महा मुर्ख लोगोमें भी महा हास्यास्पद हो गया. अब वह अंतमें सर्व प्रकारका दुःख भोगता हुवा पाटलीपुर नगरमें सोमदत्त शेठके पास जाकर पिताकी बतलायी हुई उपरोक्त सात शिक्षाओंका अर्थ पूछने लगा. उसकी सब हकीकत सुनकर सोमदत्त बोला- मूर्ख ! तेरे बापने तुझे बड़ी कीमती शिक्षायें दी थी, परंतु तु कुछ भी उनका अभिप्राय न समझ सका, इसीसे ऐसा दुःखी हुवा है ! सावधान होकर सुन ! तेरे पिताके बतलाय हुए सात पदोंका अर्थ इस प्रकार है:--
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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