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________________ (१२४) लिये पैसा न करना. या जहां सुखसे निद्रा आवे वहां पर सोना यह आशय था. (६) हरएक गांवमें घर करना जो कहा है उसमें यह न समझना चाहिये कि गांव गावमें जगह लेकर नये घर बनपाना. परंतु इसका आशय यह है कि, हरएक गांवमें किसी एक -मनुष्यके साथ मित्राचारी रखना. क्योकि किसी समय काम पड़ने पर वहां जाना हो तो भोजन शयन वगैरेह अपने घरके समान सुख पूर्वक मिल सके. (७) दुःख आनेपर गंगा किनारे खोदना जो बतलाया है सो दुःख पडनेपर गंगा नदी पर जाने की जरूरत नही परंतु इसका अर्थ यह हैं जब तेरे पास कुछ भी न रहे तब तुम्हारे घरमें रही हुई गंगा नामकी गायको बांधनेका स्थान खोदना. उस स्थानमें दबे हुये धनको निकाल कर निर्वाह करना. शेठके उपरोक्त वचन सुन कर वह मुग्ध आश्चर्यमें पडा और कहने लगा कि, यदि मैने प्रथमसे ही आपको पूछ कर काम किया होता तो मुझे इतनी विडंबनायें न भोगनी पडती. परंतु अब तो सिर्फ अंतिम हा उपाय रहा है. शेठ बोला-खेर जो हुवा सो हुवा परंतु अवस जैसे मैंने बतलाया है वैसा बर्ताव करके सुखी रहना. मुग्ध वहाले चलकर अपने घर आया और अपने पुराने घरमें जहा गगा गायके वाधनका स्थान था वहा खोदनेसे बहुतसा धन निकला जिससे वह फिरभी धनाढ्य बन गया. अब वह पिताकी दी हुई शिक्षाओंके आभिप्राय पूर्वक वर्तने लगा. इससे वह अपने माता पिताके समान 'सुखी हुवा.* SANE* यह कथा हिन्दी कथाओके साथ ही छपवाने वास्त कंपोझ काइथी परंतु भुलसे रह गई और पृष्ट ७५ से प्रश्नोत्तर छप जानेसे और यह कयासीही रह जानेसे गुजराती भाषाके कथाओके साथमे ही यहांपर छपवाई है.
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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