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________________ [१०४] गजल जोधहि नगर । कैसाक, मानु इन्द्रपुर जैसा । कहियै सोम तिन केतीक, अपनी बुध है जेतीक ॥ ॥ पोसह मास घलि वदि पक्ष, दसमी तिथा भृगु परतक्ष । खमजो सुकवि चित्त हि लाय, बालक रीत कीनी धाय ॥ १०२ ॥ लेखन-सं १९०१ रीगजल जोधपुररी है पं० नान विजय पं० गुलाव विजयजी कृत। (प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय ) (१०) जोधपुर नगर वर्णन गजल । पद्य ४९ । हेम । सं० १८६६ कार्तिक सुद १५ । आदि दोहा समरूं गणपत सारदा, धरूं ध्यान चित्त धार । ज' गजल जोधाण की, निपट सुणो नर नार || १ || x मुरधर देश है मोटाक, तिहां नहीं काहे का तोटाक ।। जिसमें शहर है जोधान, वणूं ताहि मिष्ट हो धान । २॥ धली अठार छासठ वर्ष, हिकमत करी काती हर्ष । निपट ही पूर्णिमा तिय नीक, ठावी गजल कीनी ठीक ॥ ४६॥ तप गच्छ गच्छ में सिरताज, रिधु जिणंद सूरही राज । मुनि वरनेम मही में मौत, कई कवि शिष्य हेम कर जोड़॥४७॥ कवित्त योधनयर जगजाण इन्द्रपुर ही सम ओपत । वाजत वन्ज छत्तीस नित्य उच्छव कर नरपति । राज ऋद्ध बढ़ रीत प्रीत नर नार रु पेखो । अही सूर चंद अडिग दुनी चाड नर थे देखो । घाह जी वाह भोपम घडिम मनुष्य घणा सुख माण री। कवि दिए जिसढ़ी कही जग शोभा जोधाण री ॥ ४७ ॥ (प्रतिलिपि-अभयजैन ग्रन्थालय)
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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