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________________ - [ ८१ प्रभुताई या ग्रन्थ की, जानत चतुर सुजान । खोर होइ सो देखि कै, दूरि करो सुग्यांन ॥ ५ ॥ श्री क्यामखानी न्यामत खां कृत ग्रन्थ बुधिसागर समाप्तं । सम्वत १८०४ वर्षे चेत्र द्वितीय सुदि ९ बुधिवारे पांडे हरिनारायण लिखापितं वाच (न) ार्था । काष्टा सिघे माथुर गछे पुहुकर गणे हिसार पट्टे भट्टारक श्री क्षेमकीर्तिजी तत्पट्टे भट्टारक श्री महसकीर्तिजी तत्पट्टे भट्टारक श्री महीचन्दजी तत्पट्टे भट्टारक श्री देवेन्द्रकीर्तिजी तत्पट्टे भट्टारक श्री जगतकीर्तिजी विराजमानै। पांडे हरिनारायण वासी फतेपुर का वांसल गोत्र स्वामीजी श्री देवेन्द्रकीर्तिजी का शिष्य पोथी लिखाई श्री जहन्नावाद मध्ये ॥ इति ॥ (११) मैना का सत्त। आदि प्रथमहि विनऊं सिरजनहारु । अलख अगोचर मया भंडारु ॥ आस तोरी मम बहुत गोसाई। तोरे डर कांपों करर की नाई ॥ शत्रु मित्र सबे काहू संभारे । भुगत देई काहू न विसारै ॥ फूलि ज रही जगत फुलवारी । जो राता सो चला संभारी ॥ अपने रंग आपु रंग राता । बूझे कौन तुमारी बाता ॥ दोहा बंधन आंखि हमारियां एको चरित न सूझि । सोवत सपनो देखियो कोठ करे कछु बूझ ॥ अंत मैना मालिन नियर बुलाई । धरि झांटा कुटनी निहुराई ॥ मुंड मुंडाई कैसे दुर दीने । कारे पोरे मुख टीका कीने ॥ गदह पलानी के भान चडाई। हाट हाट सब नगर फिराई ॥ जो जैसा करे सु तैसा पावे । इनि बातनि का अनखु न भावे ॥ भागे दिये जो जो रहवाना । को दो बोयें कि लूनिय धाना ॥ दोहा सत मैना का साधन, थिर राखा करतार । कुटनि देस निकारि, कीन्ही गंगा के पार ॥ इति मैना का सत्त समाप्त । लेखनकाल–१८ वीं शताब्दी
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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