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________________ [८० ] लेखन काल-अथ संवत् १७१६ मिती आसोज सुदी १४ वार सोमवार ता० ११ मास मुहरमु सं० १०७० पोथी लिखाइतं पठनार्थ फतंहचन्द लिखतं भीख देवें। श्रीमाल टाक गोत्र सुभं भवत । श्री लिखीया बहु रहै, जे रखि जाने कोइ । ... . ....... ..."गलमल मीटी होइ ।। प्रति-पत्र १८३ । पंक्ति १८ । अक्षर २१ । साईज ४॥४८॥। (अभय जैन पुस्तकालय) विशेष-इस ग्रन्थ की अन्य एक प्रति दिल्ली के दिगंबर जैन ज्ञानभंडार में है। उसमें अन्त की प्रशस्ति भिन्न प्रकार की है, अतः वह भी नीचे दी जाती है दोहा हांसी ऐसी ठौर है, उत जो रोवती जाई । इच्छा पूजे सुखित है हसत खिलत घर जाई ।। चौपाई पातिसाह को करौ बखांन, साहिजहां ढिलो सुलतान । दुहु जगत में भयो कबूल, - गह्यौ पंथ विजसरा रसूल ।।१।। ऐसो दोनो ग्यांन इसाह, दोनों जुग जीते पतिसाह । इन के वडे जिते ह गये, ते सब पातिसाह ही भये ॥२॥ चिगंज तिमर उमर बघर, बहुरि हिमायूं साहि अकब्बर । पाछे जहांगीर सुलतान, ताकै उपजे साहिजहांन ।।३।। जहाँगीर कीनी तप कौन, साहिजहाँ उपजै जिन भौन । साहिजहाँ की सब जग आंन, सप्त दीप पर ज्यों तप भान ॥४॥ थहरत सप्त दीप के लोह, ज्यों लगि पवन दीप की लोई । राना में नर हीरा नाई, राइ निरहीन राई राई ॥५। दोहा पातिसाह सौ नेकु वर, काह को न बसाय । ठंड पर सेवा करें, राजा राहा राह ।। १ ।। शान कियौ नव नव कथन मूल शास्त्र मर्याद । वृद्धि वदाई पाइये जुगन रहे अपवाद ।। २ ॥ कियौ शास्त्र कवि जान यह, साहजहाँ की भेट । देस देस में विसतरयौ छानी रह्यौ न नेट ॥ ३ ॥ जो लो तारा चन्द्र रवि, मेरु नदी जल राज । अन्य येह तो लौं रहे, स्वहित पर हित काज ।। १ ।।
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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