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________________ प्रति-गुटकाकार । पत्र ५०॥ से ६७ । पंक्ति १३ । अक्षर १२ । (अभय जैन ग्रन्थालय वि० गुटका ) विशेष—मालिन ने मैना को सत ( शील ) से च्युत करने का प्रयत्न किया पर वह अटल रही। बीच में १२ मास का वर्णन है । (१२) मोजदीन महताव की वात । पद्य ९४ । भादि सेहर इरानी पातिस्या खुदादीन तसु नाम । साहिजादा सिर मोजदीन मीनकेत के धाम ।। १ ।। भया अठारह वर्ष का लगा इश्क के राह । सहिजादा सिर उपरै संक न मानें साह ॥ २ ॥ अंत मोजदीन के खास में हुरम तीनसौ साठ । ता उपर महिताब का बडा अमेरा घाट ||९३॥ मरदो कबहु न कीजीये पर महिरी से प्रीत । जो कोइ करो तो कीजीयो मोनदीन की रीत ॥१४॥ इति मोजदीन महताब की वात संपूर्ण । लेखन काल-१९ वी शताब्दी । प्रति-पत्र ३। (लच्छीराम यति संग्रह) (प्रतिलिपि हमारे संग्रह में) (१३) राधा मिलनआदिश्री राधा मिलन लिख्यते । श्री किसन लीला। श्री वृन्दावन विहार जानि उजैनि को वास छोड़ि सुवा दीपन रसीस्वर की माता श्री पूरणमासि जु वृन्दावन में वास करन कुं आई । पोतो एक साथ लै आई । ताको नाम मधु मंगल है। सो श्री किसनजी को गुवाल भयो है । सो श्री किसनजी के संग फिरे। अंत तव उनकी मा (ता) कीरति ने पुचकारि छाती सौं लगाइ लई । अरु कहन लागी घेटी तोकौं अवार बोहत भई है। तु रसोई जीमि लैं भोजन सी होइ गयो हैं । तब
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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