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________________ [ ७९ ] लेखन संवत्-१९०५ का मिती जेठ सुदी ६ वार बुधवार लिखते नगर सीकरी माहि। राज महाराजाधिराज श्री रामप्रतापसिघजी कौड़ी वरस करौ । प्रति-(१) गुटकाकार । पत्र १२ से ५६ । पंक्ति १९ । अक्षर १२ । साईज ७४९। (अनूप संस्कृत लायब्रेरी) (१०) बुध सागर । जान सं० १६९५ भादिअथ बुधसागर प्रन्थ लिख्यते । चौपाई ली भादि भगोचर नाम, तो सब पूजे मनसा काम । अभिगति गति सुर असुर न जानत, मानस वपुरौ कहा वखांनत ॥ ६॥ येक जीभ ताको क्छु वस नां, हार्यो सेस सहस द्वै रसनां । है भभिगति को जलधि अपार, ताको कोई न पैरन हार । २॥ काहू वाको भेद न पायो, निगम अगम निगमै में पायो । भळख भेद में मन दोरावै, सो आपुन को निबंध पावै ॥३ । ये जु कथा तुम सौं कही सकल करहु इक ठांव । ताको ग्रंथ वनाइक धरि बुधिसागर नांव ॥चौ० ४५५|| जब अन्य ही पदि तुम सुख पावहु, तब मोको चित ते न भुलावहु । ज्यों ज्यों लाभ ग्रन्थ ते रहिये, मेरी सुरति किये हि रहिये । घुधिसागर पर जो तुम चलिहौ नीके मान अरनि को मलिहों ।। बुधिसागर में जो मन धरिहै, तात कबहू चूक न परिहैं ।।२।। दाव सलेम तवहि सिर नायो, सो करिहौ जो तुम फरमायो । विदा होय अपने घर आये, कवि पंडित तव निक्ट बुलाये ॥३॥ सब मिल दीनों ग्रन्थ बनाई, रीझ बहुत दीनों कछु राई । मग में उपज्यो ग्रंथ उजागर, माला रत्न नांव वधिसागर ।।४।। चल्यो ग्रन्थ उपरि करि भाइ तवहि भयो गइन को राइ । पाछे जिते भये जगु राइ पठ्यो प्रथ यह हितु चित लाइ ।।५।। दोहा सोरह से पंच्यानुवै संवत हौ दिन मांन । भगहन सुदि तेरस हुती ग्रथ कियो कवि जान ।। इति ग्रन्थ बुधिसागर सपू सम्प्त (माप्त)।
SR No.010724
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherPrachin Sahitya Shodh Samsthan Udaipur
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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