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________________ एक आध्यात्मिक अनुभव श्री बारन फेरी फोन ब्लोमबर्ग बोस्टन, अमेरिका जब मैं जैन धर्म के प्रमुख प्राचार्यश्री तुलसी के सम्पर्क में पाया, तब मेरे लिए वह एक नया प्राध्यात्मिक अनभव था और उससे मैं अत्यधिक प्रभावित हुआ । अनेक वर्षों में मैं यह मानने लगा है कि अध्यात्म ही सब कुछ है और प्राध्यात्मिक मार्ग से सब समस्याएं हल हो सकती हैं। दुनिया ने कुटनीति, राजनीति, बल-प्रयोग, अणुबमों और भौतिक साधनों का प्रयोग किया, किन्तु सब असफल रहे । मैं स्वयं एक ईसाई हूँ और मुझे स्पष्ट प्रतीत होता है कि जैन दर्शन में सब धर्मों और विश्वासों का समावेश हो जाता है। प्राज दुनिया को प्राध्यात्मिक एकता को जितनी आवश्यकता है, उतनी पहले कभी नहीं थी। जब दुनिया में प्राग लगी हुई है तो हम बहुधा एक-दूसरे के विरुद्ध क्यों काम कर रहे हैं ? आज यदि हम सच्चे प्राध्यात्मिक प्रेम-भाव से मिल कर काम करे तो सभी लक्ष्य सिद्ध हो सकते हैं। मैं प्रति क्षण यही प्रार्थना करता हूँ कि मेरा जीवन पूर्णतया प्राध्यात्मिक हो; मैं वचन और कर्म में सत्य का अनुसरण करूं। यह प्रकट सत्य है कि भौतिक पदार्थों का सम्पूर्ण त्याग कर देने पर भी जैन साधु सुख और शान्तिपूर्वक रहते है । यथार्थ रूप में तो मुझे कहना चाहिए कि उनको शान्ति 'त्याग कर देने पर भी नहीं, अपितु त्याग करने के कारण है। मैं चाहूंगा कि जैन धर्म और उसके सिद्धान्तों का हर देश म प्रसार हो । यह विश्व के लिए वरदान ही सिद्ध होगा। ___ मैं यह मानता हूँ कि यह मेरे परम भाग्य का उदय था कि प्राचार्यश्री तुलसी के सम्पर्क में मैं आया। जैनों की पुस्तिका मेरे हाथ में आई और उनके प्रतिनिधि बम्बई में मुझसे मिलने पाए। मै इस सबके लिए अत्यन्त प्राभारी हूँ। ___ मैं अपने कार्य के सम्बन्ध में दुनिया के नाना देशों में जाता हूँ, बराबर यात्रा करता रहता हूँ और सभी तरह के एवं सभी श्रेणियों के लोगों से मिलता हूँ। प्राज मर्वत्र भय का माम्राज्य है-युद्ध का भय, भविष्य का भय, सम्पनिअपहरण का भय, स्वास्थ्य-नाश का भय, भय और भय ! इस भय के स्थान में हमें विश्वास और श्रद्धा की स्थापना करनी होगी; वह श्रद्धा जिममे कि अन्ततः विश्व-शान्ति अवश्य स्थापित होगी। इतिहास हमें बार-बार यही शिक्षा देता है कि युद्ध से युद्धों का जन्म होता है । जीत किसी की नहीं होती, अपितु सभी की करुणाजनक हार ही होती है। पूर्णता प्राप्त करने के लिए हमें प्रतिदिन ऐसा प्रयत्न करना चाहिए, जिससे मोक्ष और ईश्वरत्व की प्राप्ति हो सके। प्रसत्य, पर-मिन्दा, सांसारिक आकांक्षाए-सभी का त्याग करना चाहिए और उनके स्थान पर जाति, धर्म मौर वर्ण का भेद भुलाकर सबके प्रति सच्ची मंत्री का विकास करना चाहिए तथा अन्तिम लक्ष्य की पोर कदम-से-कदम मिला कर मागे बढ़ना चाहिए। मेरा विश्वास है कि अणुवत-आन्दोलन स्थायी विश्व-शान्ति का सच्चा और शक्तिशाली साधन बन सकता है। धीरे-धीरे ही सही, किन्तु यह पान्दोलन सारे विश्व में फैल सकता है। जैन दर्शन का मूल सत्य है। सत्य से सब कुछ सिद्ध हो सकता है। हमारा भविष्य हमारे अपने हाथों में है। हम अपने-माप सुख और दुःख की रचना कर सकते हैं। पश्चिम को जैन सिद्धान्तों की बड़ी प्रावश्यकता है। पूर्व और पश्चिम के धर्म एक-दूसरे की पूर्ति कर सकते हैं। उन सबमें प्रेम और सत्य का स्थान है। इस विषय में उनमें कोई अन्तर नहीं है। दुनिया में प्राज पूर्वाग्रहों को लेकर गहरी खाई पड़ी हुई है। उस पर हमको सहमति का पुल निर्माण करना चाहिए । अध्यात्म के द्वारा ही यह सम्भव हो सकता है।
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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