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________________ मैक्सिको की श्रद्धांजलि डा० फिलिप पाडिनास डीन, इतिहास और कला संकाय, माईबेरो-प्रमरीकाना विश्वविद्यालय, मैक्सिको मैक्सिको से प्राचार्यश्री तुलसी को विनत प्रणाम । प्राचार्यश्री तुलमी के प्रति श्रद्धांजलि प्रकट करने का अवसर पाकर मैं अपने को धन्य मानता है। मेरी यह छोटी-सी अभिलाषा रही है कि इस भारतीय जन प्राचार्य के प्रति जिन्होंने विश्वशान्ति के लिए अपना समग्र जीवन समर्पित कर दिया है, विश्व के अनेक विद्वान् जो श्रद्धांजलि भट करेंगे, उसमें मैं भी मैक्सिको की अोर से अपना योग दूं। मैक्मिको अभी तक एक युवा देश है, किन्तु सम्भवत: उनना युवा नहीं, जैसा बहुत लोग समझते हैं। यद्यपि हमारा इतिहास अर्थात में हमारे लोगों का जीवन-वृन ईमा पूर्व की दो सहस्राब्दियों से प्रारम्भ होता है, फिर भी हमारी स्पष्ट जानकारी मैक्सिको की घाटी में अवस्थित टिग्रोटिहयाकन (Teotihuacan) नामक एक धार्मिक केन्द्र के सम्बन्ध मे प्रारम्भ होती है । इस केन्द्र के माथ-साथ ईसा पूर्व के लगभग छठी शताब्दी में दो पीर महत्त्वपूर्ण केन्द्र थे । ला वटा (La venta) जो वर्तमान में टाबस्को प्रान्त में है और मोण्टे अलबान ( Monte Alban) जो प्रोक्साका प्रान्त में है। इन तीनों केन्द्रों ने लेग्वन-कला और तिथि-पत्र का विकास किया । तिथि-पत्र का उद्देश्य केवल मौसम पर ही नहीं, समय पर नियन्त्रण प्राप्त करना था, कारण तत्कालीन कृषि-प्रधान सभ्यता के लिए यह आवश्यक था। सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि ये बड़े-बड़े नगर युद्धों और शस्त्रो से अपरिचित थे। वह शान्ति का काल था और उस समय हमारे लोग श्रम करते, देवताओं की प्रार्थना करते और शान्तिपूर्वक रहते थे। दूसरे केन्द्रों के विषय में भी जो अब ग्राटेमाला गणराज्य में है, यही बात कही जा मकती है। उनके नाम हैं, टिकाल (Tikal) और याक्माक्टन (Uaxactan) । यद्यपि ये समारोहिक सास्कृतिक केन्द्र उल्लिखित केन्द्रों से पश्चात्कालीन थे। दर्भाग्यवश पश्चिम के सम्पर्क में पहले ही हमारे देश में विनाश और हिमा का प्रादुर्भाव हो चुका था। उस महान युग के अन्त को, जो करीब ईमा को सातवीं से नवीं शताब्दी के मध्य था, हम 'विशिष्ट' (Classic) यग कहते हैं । उस समय हमारे लोगों के जीवन में अत्यन्त आकस्मिक और गहग परिवर्तन हुआ। प्रान्तरिक क्रान्ति और बाह्य प्रभावों ने इन समुदायों में आमूल परिवर्तन कर दिया। हमें बोनाम्पक (Bonampak) योद्धाओं और बलिदानी पुरुषो के पाश्चर्यजनक भित्ति-चित्रों में हिंसा का इतिहास मिलता है । दुर्भाग्यवश ऐसा प्रतीत होता है कि ठेठ पाश्चात्यों के मागमन तक यह नई स्थिति स्थायी रही। ईस्वी सन् १९१५ में जब हरमन कोर्टीज ने मैक्सिको के मुख्य संस्कृति के केन्द्र टेनोक्टिट्लान (Tenoctitlan) नगर पर विजय प्राप्त की, तब से लेकर दीर्घकाल तक हिंसा का बोलबाला रहा। केवल अन्तिम २५-३० वर्षों में शान्ति का नया जीवन हमें देखने को मिला है। यह रोचक तथ्य है कि प्राचीन भारतीय सभ्यता के अनेक विचार हमारे लोगों के मानम में गहरे बैठे हए है। किन्तु जो लोग केवल फिल्मों और कुछ साहित्य के आधार पर मैक्सिकों के विषय में अपनी धारणा बनाते हैं, उन्हें यह समझने में कठिनाई होगी कि हमारे लोगो के मानस की एक विशेषता यह भी है कि वे शान्तिपूर्ण हैं, हिसक नहीं। जब आप हमारे राजनीतिक इतिहास का नहीं, हमारे सांस्कृतिक इतिहास का थोड़ी गहराई के साथ अध्ययन करेंगे तो पाप सरलता से हमारे अहिमा-प्रेम का पता लगा सकेंगे।
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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