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________________ अध्याय ] प्राचार्यश्री तुलसी के अनुभव चित्र रूप देता हूँ।" प्राचार्यश्री का जीवन वैयक्तिक की अपेक्षा सामुदायिक अधिक है। उनका चिन्तन समुदाय की परिधि में अधिक होता है। वे तेरापंथ के शास्ता हैं । शासन में उनका विश्वास है, यदि वह प्रात्मानुशामन मे फलित हो तो। संगठन में उनका विश्वास है. यदि वह पात्मिक पवित्रता मे शृंखलित होतो । उनकी मान्यता है, "मेरा मात्मा जितनी अधिक उज्ज्वल रहेगी, शासन भी उतना ही समुज्ज्वल रहेगा।"२ स्तवना में खुश न होने की साधना प्राचार्यश्री की आस्था प्रात्मा से फलित है और धर्म में क्रियान्वित है। इसलिए वे प्रात्म-विजय को सर्वोपरि प्राथमिकता देते हैं । लक्ष्य की सिद्धि का अंकन करते हुए प्राचार्यश्री ने लिखा है-"लाडनूं का एक व्यक्ति'.. 'पाया और उसने कहा-'इन वर्षों में मेरे मनोभाव आपके प्रति बहुत बुरे रहे हैं। मैंने अवांच्छनीय प्रचार भी किया है। उसने जो किया, वह मुझे सुनाया । उसे मुन क्रोध उभरना सहज था, पर मुझे बिल्कुल क्रोध नहीं पाया। मैंने सोचा, निन्दा सुन कर उत्तेजिन न होना, इस बात में तो मेरी साधना काफी सफल है; पर स्तवना या प्रशंसा सुन कर खुश न होना, इस बात में मैं कहाँ तक सफल होता है, यह देखना है।" असमर्थता को अनुभूति प्राचार्यश्री सत्य की उपासना में मंलग्न है। सत्य को अभय की बहुत बड़ी अपेक्षा है। जहाँ अभय नहीं होता, यहाँ मन्य की गति कुण्ठिन हो जाती है। सत्य और अभय की समन्विति ने प्राचार्यश्री को यथार्थ कहने की शक्ति दी है और इसीलिए उनमें अपनी दुर्बलताओं को स्वीकार करने व दूसरों की दुर्बलतानों को उन्हीं के सम्मुख कहने की क्षमता बिकसित हुई है। तेरापंथ के प्राचार्य जो चाहते हैं, वह उनके गण में महज ही क्रियान्वित हो जाता है। किन्तु कुछ भावनाएंगेमी हैं, जिन्हें प्राचार्यश्री ममूचे गण मे प्रतिबिम्बित नहीं कर पाए। इस अममता का उल्लेख आचार्यश्री ने इस भाषा में किया है--"मेरा हृदय यह कह रहा है कि धर्म को ज्यादा से ज्यादा व्यापक बनाना नाहिए। पर समूचे संघ में मैं इस भावना को भरने में समर्थ नहीं हुआ। हो सकता है, मेरी भावना में इतनी मजबूती न हो, अथवा अन्य कोई कारण हो।" ग्राज रविवार के कारण विशेष व्याख्यान था, पर मेरी दृष्टि में अधिक प्रभावोत्पादक नहीं रहा।"५ । प्राचार्यश्री किमी भी धर्म-सम्प्रदाय पर आक्षेप करना नहीं चाहते; पर धार्मिक लोगों में जो दुर्बलता घर कर गई हैं, उन पर कर प्रहार किये बिना भी नहीं रहते । बीकानेर में एक ऐमा ही प्रसंग था। उसका चित्र प्राचार्यश्री के शब्दों में यों है.-'प्राज साल्हे की होली वाले चौक मे भाषण हुमा । उपस्थिति अच्छी थी। लगभग पांच-छह हजार भाई-बहिन होगें। दस बजे तक व्याख्यान चला। इस स्थान में जैनाचार्य का व्याख्यान एक विशेष घटना है। यहाँ ब्राह्मण ही ब्राह्मण रहते हैं। जैनधर्म के प्रति कोई अभिमचि नही; फिर भी बड़ी शान्ति से प्रवचन हुआ। यद्यपि ग्राज का प्रवचन बहुत स्पष्ट और कटु था, फिर भी कटकौषध-पान-न्यायेन लोगों ने उसे बहुत अच्छे में ग्रहण किया।" १ वि० सं० २०१० चैत्र कृष्णा १४ २ वि० सं० २०१४ प्राश्विन शुक्ला ५, सुजानगढ़ ३ वि० सं० २०१४ दीपावली, सजानगढ़ ४ वि० सं० २०१० चैत्र कृष्णा ७, पुनरासर ५ वि० सं० २०१० श्रावण कृष्णा, जोधपुर ६ वि० सं० २०१० साल कृष्णा, बीकानेर
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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