SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४ ] प्राचार्यश्री तुलसी अभिनन्दन प्राय [ प्रथम दृष्टि अधिकांश माथिक होती है। हमारे शासन को धर्म-निरपेक्ष शासन होने का बड़ा गर्व है। वास्तव में तो हमारा शासन धर्म-निरपेक्ष शासन नहीं है। धर्म विशेष निरपेक्ष भले ही हो, परन्तु सर्वथा धर्म से विमुख नहीं है। कोई भी शासन सामान्य धर्म की उपेक्षा नहीं कर सकता। परन्तु वस्तुस्थिति यह है कि शासन की बड़ी-बड़ी योजनाएं धर्म की दृष्टि से नही बनाई जा रही हैं। हमारा शासन तो अवश्य चाहता है कि जनता का चरित्र ऊँचा हो। हमारे शासन को बहुत दुःख है कि देश में स्वातन्त्र्य के बाद चरित्र गिर रहा है । परन्तु शासन का विचार यह है कि देश में पार्थिक उन्नति के साथ-साथ चरित्र की उन्नति स्वयं ही हो जायेगी । परित्र-उन्नति के साक्षात् प्रयत्न करना शासन का काम नहीं है, वह तो जनता का काम है। प्राचीन भारत में परिस्थितियाँ भिन्न थीं। जनता में धर्म बुद्धि अधिक थी, परलोक से डर था, धर्माचार्यों के नेतृत्व में श्रद्धा थी। प्रत्येक धर्म और सम्प्रदाय के अनेक धर्माचार्य होते थे और जनता पर बड़ा प्रभाव था। शासन और धर्माचार्यों का परस्पर सहयोग था। दोनों मिलकर जनता को चरित्र-भ्रंश से बचाते थे। वह परिस्थिति अब नहीं है। प्रश्न यह है-अब क्या हो ? धर्माचार्यों के लिए स्वणिम अवसर परिस्थिति तो अवश्य बहुत बदल गई है। परन्तु स्मरण रहे कि हम लोग अपने-अपने धर्म को सनातन मानते है। हम लोग मानते हैं कि परिस्थिति के भिन्न होते हुए भी मानव-जीवन में कुछ ऐसे तत्त्व हैं जो सनातन है, जिनको स्वीकार किये बिना मनुष्य-जीवन सफल नहीं हो सकता है, मनुष्य सुख प्राप्त नहीं कर सकता है। भारत में अनेक धर्मों और सम्प्रदायों का जन्म हुआ। हर एक धर्म और सम्प्रदाय अपने तत्वों को सनातन मानता है और उनको हर एक परिस्थिति में उपयुक्त मानता है। इन तत्वों का रहस्य हमारे धर्माचार्य ही जानते हैं, वे ही साधारण जनता में उनका प्रचार कर सकते है। भारत में जो-जो धर्म और सम्प्रदाय उत्पन्न हुए, वे सब भारत में आज भी किसी-न-किसी रूप में विद्यमान हैं। उनकी परम्पराएं भी अधिकांश सुरक्षित हैं। इन धमों के रहस्य जानने वाले धर्माचार्य और साधु-संन्यासी हमारे ही बीत है और जगह-जगह काम भी कर रहे हैं। हाँ, प्रब शासन मे उनका इतना सम्बन्ध नहीं है जितना प्राचीन काल में था। नथापि इन धर्मों का रहस्य जानने वाले जनता ही के बीच रहते है और जनता के अन्तर्गत हैं। क्या हमको यह प्राशा करने का अधिकार नहीं है कि इस भयंकर ममय में जब चरित्र-भ्रश के कारण जनता अधिक पीडित है, हमारे धर्माचार्य और साधु-संन्यासी अपने को संगठिन करके देश के चरित्र निर्माण का काम अपने हाथ में ले ले। जनता में इस प्रकार की प्राशा होना स्वाभाविक है और धर्माचार्यों को यह दिग्बलाने के लिए एक स्वणिम अवमर प्राप्त है कि हमारे प्राचीन धो और सम्प्रदायों में आज भी जान है। प्राचार्यश्री तुलसी की दिव्य दृष्टि जिन धर्माचार्यों ने वर्तमान परिस्थितियों को अच्छी तरह से समझ कर इस नये अवसर पर, भारतीय जनता और भारतीय संस्कृति के प्रति अगाध श्रद्धा और प्रेम से प्रेरित होकर उनकी रक्षा और सेवा करने का निश्चय किया. उनमें प्राचार्यश्री तुलसी का नाम प्रथम गण्य है। प्राचार्यश्री ने अपना 'अणुव्रत-आन्दोलन' प्रारम्भ करके वह काम किया है जो हमारे सबसे बड़े विश्वविख्यात नेता नहीं कर सकते थे। उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देख लिया कि चरित्र-भ्रंश के क्याक्या बुरे असर देश पर हो चुके हैं और अधिक क्या-क्या हो सकते हैं। उन्होंने देखा कि इसके कारण देश का कृच्छ-समुपाजित स्वातन्त्र्य खतरे में है। चरित्र-भंग के कारण व्यक्ति, वर्ग, दल पोर जातियां अपने-अपने स्वार्थ-साधन में तत्पर हैं, देश, धर्म और संस्कृति का चाहे जो भी हो जाए। चरित्र-भ्रंश का एक बहुत कड़वा फल यह होता है कि जनता में पारस्परिक विश्वास सर्बथा समाप्त हो जाता है। जहाँ परस्पर विश्वास नहीं है, वहाँ संगठन नहीं हो सकता है; जहाँ फूट होती है, वहाँ एकता नष्ट होती है । अब देश में फिर अलग-अलग होने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। नये-नये सूबों की मांग चारों प्रोर से उठ रही है। इनके पीछे व्यक्तियों का और वर्गों का स्वार्थ छिपा हुमा है। भाषा-सम्बन्धी झगड़े जिस प्रकार उत्तर भारत में द्रोह और हिंसा के कारण हो रहे हैं, उसी प्रकार दक्षिण भारत और लंका में भी। व्यक्तिगत जीवन में
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy