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________________ भारतीय दर्शन के अधिकृत व्याख्याता सरदार ज्ञानसिंह रावाला सिचाई और बिजली मंत्री, पंजाब सरकार भी संत सेवा और गुरु-भक्ति पर अधिक संत और गुरु का महत्त्व भारतवर्ष में सदा से रहा है। गुरु नानक ने से अधिक बल दिया। पाचार्यश्री तुलसी केवल संत ही नहीं वे संत-नायक हैं। उनकी वाणी साढ़े छः सौ साधु-साध्वियों की वाणी है। प्रणुव्रत प्रान्दोलन का प्रवर्तन कर प्रापने सारे देश को नैतिक उद्घोष दिया है। देश में इसकी सबसे बड़ी Materता थी । देश आजाद हुआ और बड़ी-बड़ी योजनाएं यहाँ क्रियान्वित हो रही हैं। पर देशवासियों का चारित्र यदि ऊँचा नहीं हो जाता तो वह भौतिक निर्माण केवल बिना रूह का शरीर रह जाता है। रोटी धौर कपड़े से भी अधिक जरूरी मनुष्य का अपना चरित्र है, पर आज हम जो महत्व रोटी और कपड़े को दे रहे हैं वह चरित्र को नहीं। रोटी और कपड़े की समस्या भी तभी बनती है, जब मनुष्य का चरित्र ऊँचा नहीं रहता। मनुष्य जो अपने बारे में सोचता है, वह पड़ोसी के बारे में नहीं सोचता। छोटे स्वार्थों के लिए बड़े स्वार्थों का हनन करता है । भारतवर्षं धार्मिक देश कहलाता है। हम बात-बात में धर्म की दुहाई भी देते हैं, पर धर्म का जो स्वरूप हमारे जीवन व्यवहार में मिलना चाहिए, यह नही मिल रहा है। माज धर्म केवल मठों, मन्दिरों, गुरुद्वारों तक ही सीमित कर दिया गया है। धर्म का सम्बन्ध जीवन व्यवहार के प्रत्येक क्षण से रहना चाहिए। बाजारों और ग्राफिसों में जब तक धर्म नहीं पहुंचता, तब तक देश का कल्याण नहीं है। धर्म के प्रभाव में ही झूठा तौल-माप, चोरबाजारी और रिश्वत श्रादि चल रहे हैं। जहाँ तक मैं समझ पाया हूँ, अणुव्रत प्रान्दोलन का जन्म धर्म के इसी दबे पहलू को उठाने के लिए हुआ है। अणुव्रत आन्दोलन धर्म को बाजारों, ग्राफिसों और राजनैतिक व सामाजिक क्षेत्रों में लाना चाहता है तों का हार्द है किसी भी क्षेत्र में कार्य करता हुआ व्यक्ति अपने धर्म-कर्म को न खोये इन्सानियत का खयाल रखे। कोई भी अनैतिक कर्म न करेणुव्रत मान्दोलन का जितना विस्तार हमारे देश में होगा, उतना ही देश हर माने में ऊंचा होगा। मुझे यह जान कर बहुत ही प्रसन्नता हुई कि श्राचार्यश्री के नेतृत्व में साढ़े छः सौ साधु-साध्विजन व्यवस्थित रूप से सारे देश में नैतिक जागृति का कार्य कर रहे हैं। मैंने दिल्ली में मुनिश्री नगराजजी के पास वह तानिका भी देखी, जिसमें अणुव्रत केन्द्रों का और वहाँ कार्य करने वाले साधुजनों का पूरा ब्यौरा था । सचमुच यह वार्य साधु-संतों से ही होने का है। भारतवर्ष के कोटि-कोटि लोग जिस श्रद्धा से उनकी बात सुनते हैं, उतनी और किसी की नहीं उसका एक कारण भी है और वह यह है कि वे जो कहते हैं, उसका अपने जीवन में पालन करते हैं । वे शिक्षा प्रणुव्रत की देते हैं और स्वयं महाव्रतों पर चलते हैं। दूसरे सभी लोगों में कथनी और करनी का वह आदर्श नहीं मिलता, अतः उनकी कही बात उतनी कारगर नहीं होती। किसी भी देश की महत्ता और सफलताओं का मूल्याकंन केवल भौतिक उपलब्धियों से ही नहीं किया जाता, बल्कि नैतिक धरातल से ही लगाया जाता है। भारतीय संस्कृति का चिरकाल से यही दृष्टिकोण रहा है और स्वाधीनता के उपरान्त इसी लक्ष्य को मूर्त रूप देने की श्रावश्यकता थी। इस दिशा में मनोयोग से काम करने वाले महानुभावों में प्राचार्यश्री तुलसी तथा इनके द्वारा प्रवर्तित प्रणुव्रत आन्दोलन ने अन्य संस्थाओं के लिए एक प्रादर्श स्थापित किया है । अतः ऐसे समाज सुधारक भारतीय संस्कृति के महान् विद्वान् और भारतीय दर्शन के अधिकृत व्याख्याता के प्राचार्यत्व के पच्चीस बसन्त पूरे हो जाने के उपलक्ष में जो अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित किया जा रहा है, वह न केवल आभार प्रदर्शन मात्र ही है, अपितु इससे हमें सतत कर्मरत रहने और राष्ट्र में भावनात्मक ऐक्य स्थापित करने की प्रेरणा भी प्राप्त होगी। 1)
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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