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________________ १७८ ] प्राचार्य भी तुलसी अभिन [ प्रथम तरह सुनाया जाये और उस पर चलने के लिए किस तरह जोश पैदा किया जाये, यहामाज के जमाने में और लोगों की बनिस्पत ज्यादा अच्छी तरह समझा है। आज सबसे ज्यादा कमी चरित्र की है। माज इस चरित्र की कमी की वजह से एक इंसान दूसरे इंसान का ऐतबार खो चुका है, एक जमात दूसरी जमात का ऐतबार खो चुकी है और एक मुल्क दूसरे मुल्क का ऐतबार खो चुका है। इस बे - ऐतवार (प्रविश्वास ) के जमाने में हरएक को एक-दूसरे से खतरा पैदा हो गया है और इस खतरे का सामना करने के लिए दुनिया के मुल्क प्रणवम और उदजन बम प्रादि का सहारा ले रहे हैं; जिनके इस्तेमाल से न सिर्फ एक मोहल्ला या एक शहर, बल्कि सूबे के सूबे, देश-के-देश साफ हो जायेंगे। ऐसे नाजुक जमाने में अणुबम के मुकाबले में अणुव्रत प्रान्दोलन चला कर आचार्यश्री तुलसी ने दुःख और निराशा के अन्धकार में भटकती हुई दुनिया को मुम्य-शान्ति की एक नई रोशनी दी है। यह ठीक है कि व्रत आन्दोलन के चलाने वाले प्राचार्यश्री तुलसी जैन श्वेताम्बर तेरापंथ-समाज के नवें श्राचार्य हैं, परन्तु मेरी दृष्टि में प्राचार्य श्री तुलसी दुनिया को मानवता का वही सन्देश मुना रहे हैं जिसे कभी योगिराज कृष्ण ने सुनाया, महावीर स्वामी ने सुनाया, महात्मा गौतम बुद्ध ने सुनाया, जिसके लिए हजरत मुहम्मद साहब ने हिजरत किया और हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी शहीद हुए। आज उसी मानवता का सन्देश, इंसानियत का ग्राम प्राचार्यश्री तुलसी और प्राचार्य विनोबा भावे हमें सुना रहे हैं। हमारा यह फर्ज है कि तन, मन धौर जी-जान से जहाँ तक मुमकिन हो, उनके इस ग्रान्दोलन को कामयाब बनाने की हम पूरी कोशिश करें। इसी में हम सबकी भलाई है, हमारे देश की भलाई है और हमारी इस दुनिया की भी भलाई है। आज ऐसे महात्मा आचार्य श्री तुलसी का धवल समारोह मनाया जा रहा है। समझ में नहीं आता, किन शब्दों में मैं अपने जज्बात का इजहार करूँ, किन शब्दों में अपनी भावनांजलि पेश करूँ। फिर भी इन चन्द शब्दों में मैं अपनी ख्वाहिश का इजहार करती हूँ कि वे चिरायु हों और सब लोगों की इसी तरह अगुव्रत आन्दोलन और मंत्री- दिवस श्रादि के जरिये रहनुमाई करें जिससे कि हमारी यह दुनिया श्राज की फैली हुई मुसीबतों मे नजात पा सके, छुटकारा पा सके । श्रादमी सच्चे माने में प्रादमी बन कर एक-दूसरे का मान करना सीख सके। सब लोग मिल-जुलकर सुख से रह सकें और इंसान की खुशहाली के लिए किन बातों की जरूरत है और किन बानों की नही है, यह समझ सकें, एक जौहरी की तरह हीरे और पत्थर की पहचान कर सकें।
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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