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________________ अध्याय 1 कुशल विद्यार्थी [ १३१ स्पष्ट विचार । प्राचीनता के हेय अंश को छोड़ने में और प्रर्वाचीनता के उपादेय ग्रंश को स्वीकार करने में वे कभी भी नहीं सकुचाते। यह उनकी स्पष्ट और मूलभूत रीति है। यही तो उनकी कुशल विद्यार्थिता है। विद्यार्थी पारखी होता है। उसका लगाव सत्य के सिवाय दूसरे के साथ हो भी कैसे सकता है ! तटस्थ दृष्टि विद्यार्थी की दृष्टि तटस्थ होती है और उसके पालोक में वह सबको पढ़ता है। प्राचार्यश्री ने तटस्थ दृष्टि के पालोक में भारतीय दर्शनों का अध्ययन किया। दर्शनों में जहाँ प्रतटस्थ दृष्टिवाले लोगों को पूर्व-पश्चिम का विभेद दीखता है, वहां प्राचार्यश्री को अभेद अधिक दीखा। वे कहते हैं -"सभी आस्तिक दर्शनों के मूलभूत उद्देश्य में साम्य है, उपासना या साधना पद्धति में थोड़ा-बहुत विभेद अवश्य है। सभी दर्शनों में हमें एक्य के बीज अधिक उपलब्ध होंगे और अनक्य के कम । थोड़े से अनक्य के आधार पर लड़ना, झगड़ना और राग-द्वेष को उत्तेजना देना धर्म के नाम पर अधर्म का सम्पोषण करना है। उचित यह है कि हम अनैक्य के प्रति, महिष्णु बनें पोर एक स्वर से एक्य के प्रसार में दत्तचित्त बन । यह सही है कि तटस्थ दृष्टि रखे बिना किसी भी दर्शन के हृदय को छुपा नहीं जा सकता। किसी भी दर्शन के प्रति गलत धारणा को लेकर उसे पढ़ना उसके प्रति अन्याय करना है। अतः दर्शन के विद्यार्थी के लिए तटस्थ दृष्टि ही स्पृहणीय है, जिसका कि प्राचार्यश्री में स्पष्ट प्रतिभास होता है। प्राचार्यश्री समन्वय की भाषा में बोलते हैं, समन्वय की दृष्टि से सोचते हैं और लिखते हैं। समन्वयमूलक वृत्ति ने ही उन्हें जनप्रिय बनाया है। वे जो बात कहते है, वह सीधी लोगों के गले उतर जाती है। उनकी वाणी में पोज, हृदय में पवित्रता और साधना में उत्कर्ष है । उत्साह उनका अनुचर है । अत्यधिक कार्य व्यस्तता भी उनके सतत प्रसन्न स्वभाव को ग्विन्न बनाने में सर्वथा अक्षम्य ही रहती है । जन-जन के जीवन को नैतिकता से प्रशिक्षित करना ही उनका व्यसन है। उनका जीवन एक प्रेरक जीवन है, इसलिए वे नैसर्गिक कुशल अध्यापक हैं। उनके जीवन से लोगों को जो विश्व-बन्धुता और नैतिकता की प्रबल प्रेरणाएं उपलब्ध हुई है, वे सतत अविस्मरणीय है। भारत के कोने-कोने से समायोज्यमान धवल समारोह आचार्यश्री की अविस्मरणीय मेवाओं की स्मनि मात्र है। इस अवसर पर मैं भी अपने को प्राचार्यश्री के अभिनन्दन मे बंचित रखें, यह मुझे अभीष्ट नहीं। -
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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