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________________ ११२ ] प्राचार्यश्री तुलसी अभिमबन पाय [ प्रथम थे। इसी कारण प्राचार्यश्री के पधारने की विशेष चर्चा थी। नई दिल्ली होते हुए अपने संघ के साथ प्राचार्यश्री ने जब दिल्ली-दरवाजे की ओर से राजधानी की पुरानी नगरी में प्रवेश किया और दरियागंज से चांदनी चौक होते हुए पाप नयाबाजार पहुँचे तो दर्शक वह दृश्य देख कर मुग्ध रह गये। ऐसा प्रतीत होता था जैसे कि महाकवि तुलसी के सन्त हंस गुण गहहि पय परिहरिपारि विकार शब्दों के अनुसार क्षीर-नीर का मन्यन करने के लिए मानसरोवर से राजहंसों की टोली राजधानी में अवतरित हुई हो। सचमुच भ्रष्टाचार, चोरबाजारी, मुनाफाखोरी, मिलावट तथा अनैतिकता के वातावरण को शुद्ध व पवित्र करने के लिए प्राचार्यश्री के अणुव्रत-आन्दोलन का नैतिक सन्देश दूध को दूध और पानी को पानी कर देने वाला ही था। तीन घोषणाएं नयाबाजार में पदार्पण करने के बाद जो पहला प्रवचन हमा, उसके कारण मेरे लिए आचार्यश्री का राजधानी की ऐतिहासिक नगरी में शुभागमन एक अनोखी ऐतिहासिक घटना थी । वह प्रवचन मेरे कानों में सदा ही गूंजता रहता है और उसके कुछ शब्द कितनी ही बार उद्धृत करने के कारण मेरे लिए शास्त्रीय वचन के समान महत्त्वपूर्ण बन गये हैं। प्राचार्यश्री की पहली घोषणा यह थी कि यह तेरापंथ किसी व्यक्ति विशेष का नहीं है । यह प्रभु का पंथ है। इसीलिए इसके प्रवर्तक प्राचार्यश्री भिखनजी ने यह कहा कि यह मेरा नहीं, प्रभु ! तेरा पंथ है । इस घोषणा द्वारा प्राचार्यश्री ने यह व्यक्त किया कि वे किसी भी प्रकार की संकीर्ण साम्प्रदायिक भावना से प्रेरित न होकर, राष्ट्र-कल्याण तथा मानव-हित की भावना से प्रेरित होकर राजधानी पाये हैं। दूसरी घोषणा प्राचार्यश्री की यह थी कि मैं अणुव्रत-आन्दोलन द्वारा उन राष्ट्रीय नेताओं के उस आन्दोलन को बलपाली तथा प्रभावशाली बनाना चाहता हूँ, जो राष्ट्रीय जीवन को ऊँचा उठा कर उममें पवित्रता का संचार करने में लगे हैं। इसी प्रकार तीसरी घोषणा भाचार्यश्री ने यह की थी कि मैं अपने समस्त माधु-संघ तथा साध्वी-संघ को गाढ़ के नैतिक उत्थान के इस महान कार्य में लगा देना चाहता हूँ। इन घोषणाओं का स्पष्ट अभिप्राय यह था कि जिस नैतिक नव-निर्माण के महान प्रान्दोलन का सत्रपात राजस्थान के सरदारशहर में किया गया था, उसको राष्ट्रव्यापी बना देने का शुभ संकल्प करके प्राचार्यश्री राजधानी पधारे थे। स्थानीय समाचारपत्रों में इसी कारण प्राचार्यश्री के शुभागमन का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया गया। मैं उन दिनों में दैनिक 'अमर-भारत' का सम्पादन करता था। इन घोषणाओं से प्रभावित होकर मैंने 'अमर भारत' को प्रणवतआन्दोलन का प्रमुख पत्र बना दिया और उसके लिए भारी-मे-भारी लोकापवाद को सहन करने हुए मैं अपने इस व्रत पर अडिग रहा। उपेक्षा, उपहास और विरोध भयांसि बहु विघ्नानि की कहावत आचार्यश्री के इस शुभागमन और महान् नैतिक आन्दोलन पर भी चरितार्थ हुई । आन्दोलन का राजधानी में सूत्रपात होने के साथ ही विरोध का बवण्डर भी उठ खड़ा हमा। ऐसे प्रत्येक आन्दोलन को उपेक्षा,उपहास,भ्रम और विरोध का प्रारम्भ में सामना करना ही पड़ता है। फिर उसके लिए सफलता की झांकी दीख पड़ती है। प्रणवत-प्रान्दोलन को उपेक्षा और उपहास का इतना सामना नहीं करना पड़ा, जितना कि विरोध का । इस विरोधपूर्ण वातावरण में ही अणुव्रत-पान्दोलन के प्रथम अखिल भारतीय सम्मेलन का आयोजन दिल्ली में टाउन-हाल के सामने किया गया । न केवल राजधानी में, अपितु समस्त देश के कोने-कोने में उसकी प्रतिध्वनि गूंज उठी। कुछ प्रतिक्रिया विदेशों में भी हई। हमारे देश का कदाचित् ही कोई ऐसा नगर बचा होगा, जिसके प्रमुख समाचारपत्रों में अणुव्रत-पान्दोलन पार सम्मेलन की चर्चा प्रमुख रूप से नहीं की गई और उस पर मुख्य लेख नहीं लिखे गये। बम्बई, कलकत्ता, मद्रास तथा अन्य नगरों के समाचारपत्रों ने बड़ी-बड़ी प्राशाओं से पान्दोलन एवं सम्मेलन का स्वागत किया। बात यह थी कि
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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