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________________ प्राचार्यश्री तुलसीप्रभिनन्दन पन्थ मैतिक शास्त्र का प्राविष्कार प्रत्येक पान्दोलन का अपना मादर्श होता है और अणुवत-आन्दोलन का भी एक मादर्श है । वह एक ऐसे समाज की रचना करना चाहता है जिसमें स्त्री और पुरुष अपने चरित्र का सोच-समझ कर परिश्रम पूर्वक निर्माण करते हैं और अपने को मानव जाति की सेवा में लगाते हैं । अणुव्रत-पान्दोलन पुरुषों और स्त्रियों को कुछ विशेष मम्यास करने की प्रेरणा देता है,जिनसे लक्ष्य की प्राप्ति होती है। हमारे साधारण जीवन में भी हमको यह विचार करना पड़ता है कि हमको क्या काम करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए । फिर भी हम सही मार्ग पर नहीं चल पाते।हम क्यों असफल होते हैं और किस प्रकार सही मार्ग पर चलने का दृढ़ संकल्प कर सकते हैं, यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। पूज्य प्राचार्यश्री तुलसी ने उन विषयों पर पर्याप्त प्रकाश डाला है और मणवत-मान्दोलन के विषय में अपने विभिन्न सार्वजनिक और व्यक्तिगत प्रवचनों में उनकी अत्यन्त वैज्ञानिक ढंग से व्याख्या की है। लोकतन्त्र एक ऐसी राजनैतिक प्रणाली है, जिसके द्वारा समाज का ऐसा संगठन किया जाता है कि सब मनुष्य उसमें सूखी रह सकें। किन्तु जब हम लोकतन्त्री सामाजिक जीवन की मोर देखते हैं तो हमें हृदयहीन धन-सत्ता और शोषण के दर्शन होते हैं। राज्य शासकों और शासितों में विभक्त दिखाई देता है। लोकतन्त्र की उज्ज्वल कल्पना प्रौर भयानक वास्तविकता में अन्तर बहुत स्पष्ट दिखाई देता है। मानव प्रेम और अगाध निष्ठा से प्रेरित होकर बारह वर्ष पूर्व प्राचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत के नैतिक शास्त्र का प्राविष्कार किया और उसको व्यावहारिक रूप दिया। प्रणव्रत शब्द निःसन्देह जैन शास्त्रों से लिया गया है, किन्तु अणुव्रत-आन्दोलन में साम्प्रदायिकता का लवलेश भी नहीं है। इस आन्दोलन का एक प्रमुख स्वरूप यह है कि वह किसी विशेष धर्म का प्रान्दोलन नहीं है। कोई भी स्त्रीपुरुष इस मान्दोलन में सम्मिलित हो सकता है और इसके लिए उसे अपने धार्मिक सिद्धान्तों से तनिक भी इधर-उधर होने की आवश्यकता नहीं होती। अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णुता इस अान्दोलन का मूल मन्त्र है। वह न केवल प्रसाम्प्रदायिक है, प्रत्युत सर्वव्यापी आन्दोलन है। प्रणवत जैसा कि उसके नाम से प्रकट है, अत्यन्त सरल वस्तु है। अणु का अर्थ होता है-किसी भी वस्तु का छोटे-से-छोटा अंग । अतः अणुवत ऐसी प्रतिज्ञा हुई, जिसका प्रारम्भ छोटे-से-छोटा होता है। मनुष्य इस लक्ष्य को प्रोर अपनी यात्रा सबसे नीची सीढ़ी से प्रारम्भ कर सकता है । कोई भी व्यक्ति एक दिन में, अथवा एक महीने में वांछित परिणाम प्राप्त नहीं कर सकता । उसको धीरे-धीरे किन्तु गहरी निष्ठा के साथ प्रयत्न करना चाहिए और शन:-शन: अपने कार्य-क्षेत्र का विस्तार करना चाहिए। मनुष्य यदि व्यवसाय में किसी उद्योग में या और किसी धन्धे में लगा हमा हो तो प्रणवत-पान्दोलन उसे उच्च नैतिक मानदण्ड पर चलने की प्रतिज्ञा लेने की प्रेरणा देता है। इस प्रतिज्ञा का पाचरण बहुत छोटी बात से प्रारम्भ होता है और धीरे-धीरे उसमें जीवन की सभी प्रवृत्तियों का समावेश हो जाता है। प्रणव्रत मनष्यों को बुद्धि-संगत जीवन की सिद्धि के लिए प्रात्म-निर्भर बनने में महायता देता है। उसके फलस्वरूप अहिंसा, शान्ति, सद्भावना और अन्तर्राष्ट्रीय सहमति की स्थापना हो सकेगी। नैतिक क्रान्ति का सन्देश भारत चौदह वर्ष पूर्व विदेशी शासन के जुए से स्वतन्त्र हमा। विशाल पंचवर्षीय योजनाओं के द्वारा भी हम आर्थिक और सामाजिक शान्ति नहीं कर पाये । जब तक हम ऐसी नई समाज व्यवस्था की स्थापना नहीं करेंगे, जिसमें निधन से निर्धन व्यक्ति भी सुखी जीवन बिता सकेगा, तब तक हमारा स्वराज्य इस विशाल देश के करोड़ों व्यक्तियों का स्वराज्य नहीं हो सकेगा। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में हमारे सिर पर सर्वसंहारकारी अणुयुद्ध का भयानक खतरा मंडरा रहा है। इस प्राणविक युग में जबकि शस्त्रों की प्रतियोगिता चल रही है, सर्वनाश प्रायः निश्चित दिखाई देता है। हमारे राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय दोनों क्षेत्रों में समस्याएं अधिकाधिक जटिल होती जा रही हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि लोकमत
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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