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________________ जैनसाहित्यमे अपने ढंगकी यह एक अच्छी पुस्तक है। इसकी समालोचना करनेके हम अधिकारी नहीं; परन्तु यह कह सकते हैं कि जैसी सरल और सुगम भाषामें यह लिखी जानी चाहिए था वैसीमे नहीं लिखी गई। वाक्यरचना और शब्द प्रयोगोंमें भी असावधानी हुई है । अनुभव और आनन्दकी एक स्वतंत्र लेख द्वारा विस्तृत व्याख्या कर दी जाती तो इसके पाठकोंको बहुत लाभ होता । ११. नवनीत-प्रकाशक, ग्रन्थप्रकाशक समिति, काशी। वार्षिक मूल्य दोरुपया । यह भी हिन्दीका एक मासिक पत्र है। इसके अबतक ७ अंक निकल चुके हैं । ७ वॉ अंक हमारे सामने है। यह रामनवमीका अंक है, इस लिए इसमे अधिकाश लेख और कविताये श्रीरामके सम्बन्धमें हैं। लेख प्रायः सभी अच्छे और पढने योग्य है । इसके कई लेखक दाक्षिणत्य हैं और वे अच्छी हिन्दी लिख सकते है। 'युधिष्ठिरकी कालगणना ' नामक लेखमें विष्णुपुराणके प्रमाणसे कृष्ण और युधिष्ठिरका समय निश्चित किया गया है। श्रीकृष्णजी इस संसारमें १२५ वर्ष रहे । कलिसंवत् १२००के लगभग महाभारतके युद्धके ३६ वर्ष बाद उनका तिरोधान हुआ । भारतके बाद १००० वर्ष तक जरासन्धके वशमें, १३८ वर्ष प्रद्योत अमात्यके वंशमें, ३६२ वर्ष शिशुनागवंशमे, और १०० वर्ष नवनन्दोंके वंशमे भारतका राज्य रहा। इसके बाद मौर्य चन्द्रगुप्त राजा हुआ। चन्द्रगुप्त ईसाके ३१५ वर्ष पहले । हुआ। इससे सिद्ध हुआ कि आजसे १९१३+३१५२१००x१००० । +३८+३६२-३६-३७९२ वर्ष पहले श्रीकृष्णका देहान्त हुआ था। एक लेखमें यह सिद्ध करनेका प्रयत्न किया गया है कि रामायणसे महाभारत पीछेका अन्थ है । परन्तु इस लेखकी केवल उत्थानिका ही इस अकमें है। ऐसे लेख जहाँ तक हो अधूरे प्रकाशित न किये
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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