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________________ १७४ प्रबन्ध न कर सकनेवाले विद्यार्थियोंको बिना सूदके उधार रुपया दिया जावे और इस बातकी लिखा पढी कर ली जाय कि जीविकाकी व्यवस्था हो जानेपर वे धीरे धीरे अपना कर्ज अदा कर देंगे। इससे सैकडों विद्यार्थियोंके लिए विद्याप्राप्तिका मार्ग सुगम हो जायगा। बम्बईमें इस प्रकारकी एक सस्था बहुत दिनोंसे चल रही है। आजतक उसके द्वारा सैकडों विद्यार्थी अपनी ज्ञानपिपासाको शान्त कर सके हैं। २. औद्योगिक विद्यालय-देश दिनपर दिन दरिद्र होता जा रहा है। लोग बिना उद्योगके मारे मारे फिरते हैं। शिक्षितोंको औद्योगिक शिक्षा नहीं मिलती, इससे वे नोकरीके सिवा और कोई भी उद्योग नहीं कर सकते है और नौकरियाँ देशमें थोड़ी हैं। शिक्षा इस प्रकारकी दी जाती है कि शिक्षितोंसे परिश्रम नहीं हो सकता-शिक्षागृहोंमें वे सुकुमार बना दिये जाते हैं। इससे एक ऐसे विद्यालयकी बड़ी भारी जरूरत है जिसमें पढ़ना लिखना सिखलानेके साथ साथ तरह तरहके उद्योग सिखलाये जावें और मानसिक परिश्रमके साथ साथ शारीरिक श्रम भी विद्यार्थियोंसे लिया जावे। जैनसमाजमें भी उद्योगहीनता बेतरह बढ़ रही है। देहातोंमें जाइए, वहाँ आपको हजारों जैनी ऐसे मिलेंगे जो उद्योगके बिना उदरपोषण करनेके लिए दूसरोंका मुंह ताकते हैं। इस विद्यालयसे हजारों निरुद्योगी सीख जावेंगे और थोडे ही समयमें स्वाधीन जीविका प्राप्त करनेमें समर्थ हो जावेंगे। यह विद्यालय अमेरिकाके कर्मवीर डा० टी. बुकर वाशिंगटनके आदर्शविद्यालयके ढंगका खोलना चाहिए। आगेके अंकमें वाशिंग्टनका जीवनचरित दिया गया है उससे उनकी सस्थाका परिचय मिल सकता है। इस विद्यालयमें और सब प्रकारकी शिक्षाओंके साथ साथ धार्मिक शिक्षाका भी अच्छा प्रबन्ध होना चाहिए।
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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