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________________ १७५ यहाँ यह प्रश्न हो सकता है कि इस प्रकारकी संस्थाको चलानेकी योग्यता रखनेवाले कहाँसे आगे ? जैनियों में सचमुच ही ऐसे वर्कर मिलना कठिन है; परन्तु अजैनोंमें प्रयत्न करने पर बहुतसे लोग मिल सकते हैं और वे बड़ी सफलतासे ऐसी संस्थाओंको चला सकते हैं। एक औद्योगिक सस्थाके लिए यह आवश्यक भी नहीं है कि जैनी ही कार्यकर्त्ता मिलें। धर्मशिक्षाका प्रबन्ध जैनियों के द्वारा हो ही जायगा। ३ सरस्वतीसदन-इस संस्थाके चार विभाग किये जावें। १ लगभग एक लाख रुपयेके खर्चसे जैनधर्मके संस्कृत, प्राकृत, मागधी और हिन्दी भाषाके तमाम हस्तलिखित और मुद्रित ग्रन्थ संग्रह किये जावें और उनसे एक अद्वितीय जैनपुस्तकालय स्थापित किया जाय। ५० हजार रुपये खर्च करके सर्वसाधारणोपयोगी सव तरहके विशेष करके सस्कृत, हिन्दी और अँगरेजीके ग्रन्थ संग्रह किये जावें और इन्दौरमें जो एक अच्छे सार्वजनिक पुस्तकालयकी कमी है उसकी पूर्ति की जाय । २५ हजारकी पूँजीसे एक अच्छा जैनप्रेस खोला जाय और ७५ हजार की पूँजीसे संस्कृत हिन्दी अँगरेजी आदि भाषाओंमें जैनग्रन्थ छपवा छपवाकर लागतके दामोंपर, अर्धमूल्यमें अथवा बिना मूल्य वितरण किये जावें। ऐसा प्रयत्न किया जाय जिससे थोड़े ही समयमे प्रत्येक स्थानके मन्दिरमें एक एक अच्छा पुस्तकालय बन जावे । इसी विभागसे अच्छे लेखकोंको पारितोषिक आदि देनेकी भी व्यवस्था की जाय । लगभग ५० हजारकी पूंजीसे एक अच्छे साप्ताहिक पत्रके और एक उच्चश्रेणीके मासिक पत्रके निकालनेकी व्यवस्था की जाय । ये दोनों पत्र इस ढंगके निकाले जावें कि जिससे जैन और अजैन सब ही लाभ उठा सकें। शेष रकमसे इमारतो और कर्मचारियोंकी व्यवस्था की जाय।
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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