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________________ १६४ कोई कठिनाई नहीं पड़ती; परन्तु नये और कठिन पाठ सीपनका कष्ट भोगे विना वे विद्वान् नहीं हो सकते। हम देखते है कि जो विद्यार्थी कठोर गुरुके पास पढ़ता है वह बहुत प्रवीण होता है। गुप्तज्ञानके प्रेमियोंको नई नई भूमिकाओंपरसे उत्तर्णि होना चाहिए, नये नये पदचिह्न बनाना चाहिए, नवीन राज्योंको जीतनेवाओं और पता लगानेवालोंको जितना साहस और सहनशीलता धारण करनी पड़ती है उससे भी अधिक साहस और सहनशीलता धारण करनी चाहिए। क्योंकि स्थूल राज्योंका पता लगानेकी अपेक्षा मूक्ष्म भवनोंके पता लगाने और प्राप्त करनेका काम बहुत ही कठिन और बहुमूल्य है । क्या आप समझते हैं कि महावीर भगवान् जैसे महात्माओंको भी यह काम सहज मालूम हुआ था ? उनका तप, उनका विहार, उनका कायोसर्ग और उनका परीषहसहन ये सब बाते क्या सूचित करती है ! दुःख दुःखसे ही दूर होता है। सोना महंगा ही मिलता है । कायर, डरपोक, सुखिया और सिर्फ ज्ञानकी ही बातें करनेवालोंको स्थूल अथवा सूक्ष्म राज्य प्राप्त करनेका अधिकार नहीं। __ जैनधर्म यह कोई जातिविशेष नहीं, किन्तु एक जीवन है। यह कोई कोरी फिलासोफी भी नहीं है किन्तु फिलासोफीकी नीवपर खड़ा किया हुआ आध्यात्मिक जीवन है। इस जीवनको जिस तरह वैश्य प्राप्त कर सकते है उसी तरह ब्राह्मण, क्षत्री, भंगी, चमार, यूरोपियन, जापानी आदि भी प्राप्त कर सकते है। वैश्य-ब्राह्मण-क्षत्री-भंगी-चमारयूरोपियन-जापानी आदि भेदोंका जैनजीवनमें जैनधर्ममें आस्तित्व ही। नहीं है। यह विश्वकी सर्वसाधारण सम्पत्ति है, विश्वके रहस्यकी कुजी है और समस्त जीवोंको परस्पर जोड़नेवाली सुवर्णमय सकल है।
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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