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________________ १३३ भिन्न वर्ण या भिन्नजातिके तुम भी सब हो। किन्तु तुम्हारा एक लक्ष्य हो, एकी ढब हो। मुसलमान, या आर्य जैन, ईसाई, तुम हो। स्मरण रहे, इस जन्मभूमिमें भाई तुम हो। रूप-रंग-आकारमें भाषामें तुम भिन्न हो। जन्म-भूमि-सेवा करो; यह कर्तव्य आभिन्न हो। -रूपनारायण पाण्डेय । ग्रन्थ-परीक्षा। (२) कुन्दकुन्द-श्रावकाचार। जैनियोंको भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यका परिचय देनेकी जरूरत नहीं है । तत्त्वार्थसूत्रके प्रणेता श्रीमदुमास्वामी जैसे विद्वानाचार्य जिनके शिष्य थे, उन श्रीकुन्दकुन्द मुनिराजके पवित्र नामसे जैनियोका बच्चा बचातक परिचित है। प्रायः सभी नगर और प्रामोंमें जैनियोकी शास्त्रसभा होती है और उस सभामें सबसे पहले जो एक बृहत् मगलाचरण (ॐकार ) पढ़ा जाता है, उसमें 'मंगलं कुन्दकुन्दार्यः' इस पदके द्वारा आचार्य महोदयके शुभ नामका बराबर स्मरण किया जाता है। सच पूछिए तो, जैनसमाजमें, भगवान् कुन्दकुन्दस्वामी एक बड़े भारी नेता, अनुभवी विद्वान् और माननीय आचार्य होगये है। उनका अस्तित्व विक्रमकी पहली शताब्दीके लगभग माना जाता है। भगवत्कुंदकुंदाचार्यका सिक्का जैनसमाजके हृदयपर यहॉतक अंकित है कि बहुतसे ग्रंथकारोंने और खासकर भट्टारकोंने अपने -आपको आपके ही वंशज प्रगट करनेमे अपना सौभाग्य और गौरव
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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