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________________ - tereketsterestcxesi सकलइंद्र जज तित आइकैं। हम जजै इत मस्तक नाइकें ॥५॥ ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णचतुर्दशयां मोक्षमङ्गलप्राप्ताय श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय अर्घ नि० ॥५॥ जयमाला - ___ छंद रथोद्धता, चंद्रवत्स तथा चंद्रवर्त्म (वर्ण ११- लाटानुप्रास) शान्ति शान्तिगुनमंडिते सदा। जाहि ध्यावत सुपंडिते सदा ॥ में तिन्हें भगतमंडिते सदा । पूजि हों कलुषहडिते सदा ॥१॥ मोच्छहेत तुम ही दयाल हो । हे जिनेश गुनरत्नमाल हो। में अवै सुगुनदाम ही धरों। ध्यावते तुरित मुक्ति-ती वरों॥२॥ छंद पद्धरि (१६ मात्रा) जय शान्तिनाथ चिद्र पराज । भवसागरमे अदभुत जहाज ॥ तुम तजि सरवारथसिद्ध थान । सरवारथजुत गजपुर महान ॥ १॥तित जनम लियौ आनंद धार । हरि ततछिन आयो राजद्वार ॥ इंद्रानी जाय प्रसूतथान । तुमको करमे ले हरप मान ॥२॥ हरि गोद देय सो मोद्धार । सिर चमर अमर ढारत अपार ॥ गिरिराज जाय तित शिला पांड। तापै थाप्यो s xeickrketeracticket
SR No.010717
Book TitleVartaman Chovisi Pooja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVrundavandas
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year1985
Total Pages177
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size6 MB
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