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________________ प्रकीर्णक। ....WWW १५ भशोकपुप्पमजरी। जै जिनेश ज्ञान भान भव्य कोकशोक हान. लोक लोक लोकवान लोकनाथ तारकं । ज्ञानसिंधु दीनबंधु पाहि पाहि पाहि देव, ___रक्ष रक्ष रक्ष मोक्षपाल शीलधारकं ॥ गर्म कर्म भर्म हार पर्म शर्म धर्म धार, ___ जैति विघ्ननिघ्नकार श्रीमते सुधारकं । औनकै पुकार मोहि लीजिये उवार हे, र उदारकीर्तिधार कल्पवृच्छ इच्छकारकं ॥ मुनिराजस्तुतिः। विजयाछन्द। *१ काममदाष्टक जीते जती जोके श्रीमतको मत जोवत तिष्टै।। १२ शंत वहइ शतवंत वहइ, नवतत्तहिं सद्दहै निष्टित शिष्टै ॥ ४ काय जिके जलकायको जानइ, काय निजेव जिवायकनिष्टै।। १८ दारइ कर्म दरै दुरदाय, हियेमें यमी रमि होय महिष्टै ॥ * विशेष—यह छन्द ऐसी चतुराईसे बनाया गया है कि क * इसमेंसे यदि कोई अक्षर कोई पुरुष अपने मनमें ले लेवे, तो। * उसे वतला सकते है। उपाय यह है कि, बतलानेवालेको * निम्नलिखित दो दोहे याद कर रखना चाहिये। दोहा। श्रीशीतलजिनवर महा, दायकइष्ट रसाल।
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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