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________________ ७० वृन्दावनविलास * "वृन्दावन" मनवचनतन, नावत तिनकहँ माल ॥ १॥ * एक दोय चौ आठ ये, क्रमतें पदपर लेख ।। * पूछ बताबहु वरन गनि, शीतल पन्द्रह पेख ॥ २॥ सारांश यह है कि, उपर्युक्त छन्दके चारों चरणोंपर क्रमसे ११-२-४-८-ये अंक क्रमसे लिखकर पूछना चाहिये कि, आपने | जो अक्षर लिया है, वह किस चरणमें है ? जितने चरणोमें वह अक्षर बतलावे, उन चरणोंपर रक्खे हुए अंकोंको जोड़ लेना * चाहिये । पश्चात् जो जोड़की संख्या हो, श्रीशीतलजि नवर महादायक इष्ट" इन पन्द्रह अक्षरों से उतने ही वॉ। १ अक्षर निसन्देह बतला देना चाहिये । जैसे त अक्षर पहले ! है और दूसरे चरणमें है । इन दोनों चरणोंपर रक्खी हुई संख्या* का जोड़ ३ होता है । वस "श्रीशीतल......."आदि पदका तीसरा अक्षर भी वही त है। जिनेन्द्रनेत्रवर्णन । छप्पय । मीन कमल मद () धनद (1) अमिय अंतकु (१) छवि छज्ज। __१इस छप्पयके प्रथम चरणमें जिनभगवानके नेत्रोंको छह उपमा दी है। और फिर शेष पांच चरणोंमें प्रत्येक उपमाके क्रमसे छह छह विशेषण * दिये हैं। जैसे प्रथम चरणमें दूसरी उपमा कमलकी है । अर्थात् भगवान के नेत्रकमलके समान है। परन्तु कैसे कमलके समान ? तो सदल (प. त्रसहित), विकसित (फूले हुए), दिवसके (दिनक),सरज (सरोवरके), और । मलयदेशके, इस प्रकार पांचोंचरणोंमें उसके विशेपणदेख लीजियोमाकी छह । उपमाओंको भी इसी प्रकार क्रमसे लगाकर समझा लेनी चाहिये । इसे पहः। विधान छप्पय कहते हैं। चतुर कवि ही इसे बना सकते हैं। - -
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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