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________________ RK2RKERAR वृन्दावनविलास हे प्रभु वेगि हरो मम आपत, दीजे मनवांछित उच्छाह ॥२॥ जनरंजन अघभजन प्रभुपद, कंजन करत रमा नित केल। *चिन्तामणि कल्पद्रुम पारस, वसत जहाँ सुरचित्रावेल ॥ सो पदपंकज हे करुनाकर, मो उर बसो सकल सुखमेल। श्रीपति मोहि जान जन अपनो, हरोविघनदुख दारिदजेल ३ । भुजंगप्रयात । तुमी कल्पनातीत कल्यानकारी। कलंकापहारी मवांभोधितारी।। रमाकंत अरहंत हंता भवारी । कृतांतांतकारी महा ब्रह्मचारी ।। नमो कर्मभेचा समस्तार्थवेत्ता । नमो तत्त्वनेता चिदानंदधारी। प्रपद्ये शरण्यं विभो लोक धन्यं । प्रमो विघ्ननिम्नायसंसार तारी॥ अनंगशेखर दंडक । (वर्ण ३२) नमामि नामिनंदनं भवाधिव्याधिकंदनं, ___ समाधिसाधचंदनं शतिंदवृंद बंदितं । अशेष क्लेशभंजनं मदादिदोष गंजनं, मुनिंदकंजरंजनं दिनं जिनं अमंदितं ।। अनंतकर्मछायकं प्रशस्त शर्मदायक, नमामि सर्वलायकं विनायकं सुछंदितं । समस्त विघ्न नाशिये प्रमोदको प्रकाशिये, निहार मोहि दास ये प्रभू करो अफंदितं ॥
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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