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________________ FKRRRRRRRR वृन्दावनविलास १६४ । सव ही विधिसों गुनवान बड़े,बलबुद्धि विमा नहि नेक हटी है।। *जिनचंदपदांबुजप्रीति विना, जिमि "सुंदरनारीकी नाक, ___ कटी है" * नरजन्म अनूपम पाय अहो, अव ही परमादनको हरिये। । १ सरवज्ञ अराग अदोषितको, धरमामृतपान सदा करिये ॥ अपने घटको पट खोलि सुनो, अनुमौ रसरंग हिये धरिये । १ * भविवृन्द यही परमारथकी, करनी करि भौ तरनी तरिये ॥ - Gha * जिनेन्द्रजन्माभिषेकभावना।। । सुरपति जिनपति न्हवन करनको, क्षीर उदधि जल आना है।। सहस अठोत्तर कलश कनकमय, और कलश असमाना है॥१॥ * कर कर कर सुर लावत मिलिकर, उच्छव होत महाना है। मंत्रसहित सब कलश ईश शिर, एकहि बार ढराना है ॥ २॥ * अघ घ घ घघ,भभ भभधधधध,धुनि सुनि भवि हरषाना है।। दिम दिम दिम मृदंग गत वाजत, नचत सची सुख माना है ३ ॥ सादि सरंगी सुरसुताल मिल, गावत सुजस सुजाना है। श्रुगत श्रुगतगत थेइ थेइ थेइ थेइ, तांडव निरत रचाना है ॥ ४॥ कर जिनन्हौन सिंगार सची रचि, सो किम जात वखाना है। धन्य धन्य वह सची सयानी, एक जनम निरवाना है । करि वियोग पितु सदन सोपि सुर, धन्य जन्म निज माना है। जो भविबंद सुजस यह गावै, सो पावै मनमाना है ॥ ६॥ ghoy my
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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