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________________ . प्रकीर्णक। ~ - श्रेयांसनाथस्तुतिः। अरिल। सिंहपुरी मुखरास वनारस पास है। जनमें तहँ श्रेयांसनाथ मुखरास है। धनद रतन झर लायो पंद्रह मास है। नववारह जोजनको नगर सुमन सुमन वरसायो सुखद सुवास है। बीन बाँसुरी आदि वजत चहुँपास है। सुरपत फनपत नरपत जाको दास है। __ भगतिसहित सुरनारि रचत जित रास है ॥ २ ॥ परम धरम दरगाय हरत भवि भास है । सेवा करत मो पावत मुरगनिवास है। जो जिनवरको मुजम त्रिलोक प्रकाश है । भविकवृंदकी मो प्रभु पुजवत आग है ॥ ३ ॥ रमन्यंजन।
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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