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________________ वृन्दावनविलास R amNAAM * जगमें मुदमंगल भूरि भरे, दुख दूर करें भवसागर तारे।। * भविवृन्द विथा अब क्यों न हरो, गुरुदेव तुम्हींमम प्रानअघारे । जिनवानीस्तुति। मनहरन । कुमति कुरंगनिको केहरि समान मानी, __ माते इभ माथे अष्टापद हहरात है। दारिद निदाघ दार प्राट् प्रचंड धार, ___ कुनै-गिरि-गंड खंड विज्जु पहरात है । आतमरसीको है सुधारसको कुंड वृन्द, सम्यक महीBहको मूल छहरात है। सकल समाज शिवराजको अजज जामें, __ ऐसो जैन वैनको पताका फहरात है । दिगम्बर-स्तुति। माधवी। * आतमज्ञान-सुधारस-रंजित, संजुत दर्वित भावित संवर। शुद्ध अहार विहार धरै, परिहार करें भविभाव अडवर ॥1 मूल गुणोत्तरमें लवलीन, प्रवीन जिनागममाहिं निरंबर। । * वृन्द नमै कर जोर सदा नित, सो जगमें जयवन्त दिगम्बर।। १ हाथी । २ प्रीष्मऋतु । ३ वर्षा । ४ वृक्षका ।
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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