SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ वृन्दावनविलास * तुम संकटा समस्तकष्टकाटिनी दानी । सुखसारकी करनी तु शंकरीश महानी ॥ जिन० ॥१८॥ इस वक्तमें जिनमक्तको दुख व्यक्त सतावै । * ऐ मात तुझे देखिके क्या दर्द ना आवै ।। *सब दिनसे तो करती रही जिनभक्तपै छाया। किस वास्ते उस बातको ऐ मात भुलाया। जिन० ॥१९॥ हो मात मेरे सर्व ही अपराध छिमाकर । * होता नहीं क्या बालसे कुचाल इहां पर ॥ *कुपुत्र तो होते हैं जगतमाहिं सरासर । * माता न त तिनसों कभी नेह जन्मभर जिन० ॥२०॥ । अब मात मेरी बातको सब भाँत सुधारो। * मनकामनाको सिद्ध करो विघ्न विदारो ॥ * मति देर करो मेरी ओर नेक निहारो। . करकंजकी छाया करो दुखदंद निवारो॥जिन० ॥ २१ ॥ ब्रह्मडनी सुखमंडनी खलखंडनी ख्याता । * दुख टारिके परिवार सहित दे मुझे साता ॥ तजके विलंब अंब जी अवलंब दीजिये । । वृषचंदनंद वृंदको अनंद दीजिये। जिन० ॥ २२ ॥ * जिनधर्मसे डिगनेका कहीं आ पड़े कारन । * तो लीजियो उवार मुझे भक्ति उधारन ॥ निजकर्मके संजोगसे जिस जोनमें जावों । तहां दीजिये सम्यक्त जो शिवधामको पावों | जिन० ॥
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy