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________________ वृन्दावनविलास* .......... । तब आपने सहाय किया धाय मात धन । * ताराका हरा मान हुआ बौध उत्थापन ॥ जिन० ॥ ७ ॥ * इत्यादि जहां धर्मका विवाद परा है। तहां आपने परवादियोंका मान हरा है । तुमसे ये स्यादवादका निशान खरा है। . इस वास्ते हम आपसे अनुराग धरा है । जिन० ॥ ८॥ *तुम शब्दब्रह्मरूप मंत्रमूर्तिधरैया । * चिन्तामनी समान कामनाकी भरैया ॥ जप जाग जोग जैनकी सव सिद्धि करैया। . परवादके परयोगकी तत्काल हरैया ।। जिन० ॥९॥ लखि पास तेरे पास शत्रु त्रासतें भाजै । * अंकुश निहार दुष्ट जुष्ट दर्पको त्याजै ॥ * दुखरूप खर्व गर्वको वह वज्र हरै है। करकंजमें इक कंज सो सुखपुंज भरै है। जिन० ॥१०॥ चरणारविंदमें है नूपुरादि आमरन । * कटिमें हैं सार मेखला प्रमोदकी करन ॥ उरमें है सुमनमाल सुमनमालकी माला। , । पटरंग अंग संगसों सोहै है विशाला ॥ जिन० ॥११॥ करकंज चारुभूषनसों भूरि भरा है । * भवि वृंदको आनन्दकंद पूरि करा है । जुग भान कान कुंडलसों जोति धरा है । शिर शीसफूल फूलसों अतूल धरा है । जिन०॥ १२ ॥
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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