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________________ FARRRRRRRRR-23 पभावतीस्तोत्र। फन तीन सुमनलीन तेरे शीस विराज । जिनराज तहाँ ध्यान धरें आप विराजै ॥ फनिइंदने फनिकी करी जिनंदपै छाया । * उपसर्ग वर्ग मेटिके आनंद बढ़ाया | जिन० ॥२॥ जिन पासको हुआ तभी केवल सुज्ञान है। * समवादिसरनकी बनी रचना महान है। प्रमुने दिया धर्मार्थ काम मोक्ष दान है । है तब इन्द्र आदिने किया पूजाविधान है। जिन ॥३॥ जबसे किया तुम पासके उपसर्गका विनाश । तबसे हुआ जस आपका त्रैलोकमें प्रकाश ॥ इन्द्रदिने मि आपके गुनमें किया हुलास । किस वास्ते कि इन्द्र खास पासका है दास॥ जिन० ॥१॥ धर्मानुरागरंगसे उमंग भरी हो। __संध्या समान लाल रंग अंग धरी हो। जिन संत शीलवंत पै तुरंत खड़ी हो। । मनभावती दरसावती आनंद बड़ी हो ॥ जिन० ॥५॥ जिनधर्मकी प्रभावनाका भाव किया है। तिन साधने भी आपकी सहाय लिया है । तब आपने उस बातको बनाय दिया है। जिस धर्मके निशानको फहराय दिया है। जि * था वोधने ताराका किया कुंभमें थापन । । अकलंकजीसों करते रहे बाद वेहापन ॥
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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