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________________ वृन्दावनविलासतिन चूर्णिका खरूप तिस्से सूत्र बनाया । * परमान छ हजार यों सिद्धांतमें गाया ॥ तिसका किया उद्धरण समुद्धरण जु टीका । 1 बारह हजारके प्रमान ज्ञानकी ठीका ॥ जैवंत ॥ १७ ॥ तिसहीसे रचा कुंदकुंदजीने सुशासन । * जो आत्मीक पर्म धर्मका है प्रकाशन ।। पंचास्तिकाय समयसार सारप्रवचन । * इत्यादि सुसिद्धान्त स्वादबादका रचन ॥ जैवंत ॥१८॥ सम्यक्त्व ज्ञान दर्श सुचारित्र अनूपा । गुरुदेवने अध्यातमीक धर्म निरूपा ॥ गुरुदेव अमीइंदुने तिनकी करी टीका । झरता है निजानंद अमीवृंद सरीका ॥ जैवन्त ॥ १९ ॥ चरनानुवेदभेदके निवेदके करता। 1 गुरुदेव जे भये हैं पापतापके हरता ॥ श्रीबट्टकेर देवजी वसुनंदजी चक्री । निरग्रंथ ग्रंथ पंथके निरग्रंथके शक्री ॥ जैवंत० ॥२०॥ • योगीन्द्रदेवने रचा परमातमाप्रकाश । शुभचन्द्रने किया है ज्ञानआरणौविकाश ॥ की पद्मनंदजीने पद्मनंदिपचीसी । * शिवकोटिने आराधनासुसार रचीसी ॥ जैवंत० ॥२ १ अमृतचन्द्रसूरिने । २ ज्ञानार्णवनामा योगप्रदीपग्रंथ।
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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