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________________ वृन्दावनविलास विधिजुत न्हौन कराय, गाय गुन बाजत वाजे । तांडव नाचै इन्द्र, वृंद उच्छव छवि छाजे ॥ त्रिभुवनभूषन देव, तिन्हें भूषन सव साजे । कोट भानुदुतिहरन, करन कुंडलिय विराजे ॥ ७३॥, ___अमृतध्वनि (मात्रा १४४) धुनिजिन खिरत अनच्छरी, जोजनपरमित हद्द। उपमा जाकी कहत कवि, जथा अब्दको शद्द ॥ सद्दन सुनि सुनि, मग्गन सुरमुनि, पग्गत तनमन ।। भजत श्रमतम, सज्जत जमनम, जज्जत जिनजन ॥ हर्षत सुमनन, वर्षत सुमनन, कुजत अलि पुन । भब्वमुदित चित, सव्व कहत तित, सत अवतधुनि ॥७॥ हुलास ( मात्रा १९२) * पारस जनम दिवस अनुकूले । अश्वसेन तनमनसुधि भूले।। सुर नरतन धन धरनि लुटावहि । दिवितें देव रतनझर लावहिं॥ । रतननि झरलावहिं, मनहरखावहि, सजि सजि आवहि, वाहनको. बहु भगत बढ़ावहिं, सुख उपजावहिं, दुरित नशावहिं, दाहनको * सुरगिर नहवावहि, मंगल गावहिं, नाच रचावहिं, चावनको ।। * भविबंद हुलासहि, जसपरकाशहि, शिवपुरंवास हि, पावनको ॥ इसके पहले एक दोहा होता है । कविराजने पहले निभगी रखके । भी अमृतध्वनि बनाया है। (देखो पृष्ट ६३)।२ एक योजन प्रमाण । १३ मेघका। ४ सद्द अर्थात् शब्द । ५ त्रिभंगी छन्दके पहले एक ! चौपाई रखनेसे हल्लास छन्द बनता है।
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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