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________________ RK-RRRRRRRAKSHRA छन्दशतक । ९७ काव्य ( मात्रा २४) श्रीसर्वज्ञ अदोष मोषहित तत्त्व बताई। ताहीके अनुसार, कथन जामें सुखदाई ॥ जाके सुनत प्रमान, मोहतम नाहिं रहावत । सुपरबोध हिय होत, वही.सतकाव्य कहावत ॥७६॥ मदावलिप्तकपोल ( मात्रा २४) श्रीजिनवरको जनम, जानि जब इंद्र चलै है। सात भाँतको सैन, आपने संग लहै है ॥ ऐरावतपर चढ़े, तबै देखत वनि आवत । ___ मैदअवलितकपोल-लुब्ध-अलि आगे धावता॥७॥ शंभु ( मात्रा ३२) नहिं कामी है नहिं क्रोधी है, नहिं लोभी मोही बंछा है। नहिं रागी है नहिं दोषी है, नहिं जामें कोऊ लंछा है ।। १ यह सर्वसाधारणमें रोलाके नामसे प्रसिद्ध है। २ कविराज हेमराजजीने अपने भक्तामरस्तोत्रके अनुवादमें जो रोडक छन्द रक्खे हैं, उनमें । 1. पहले छन्दके प्रारभमें "मदअवलिप्तकपोलमूल अलिकुल झंकारें" ऐसा पद रक्खा है । जान पड़ता है, इसीके कारण इसका नाम मदअवलिप्तकपोल पड गया है । अनेक कवि तो चाल "मदअवलिप्त कपो लकी" इस तरह लिखते आये, परन्तु वृदावनजीने इसका नाम ही मदर * अवलिप्तकपोल रख दिया । ३ मदसे लिपटे हुए कपोलोंमें लुब्धलालची भौरे । ४ शभुको अन्याय कवियोंने वर्णिक छन्द माना है, मात्रिक नहीं। उसमें (स त य मम मग) के क्रमसे १९ वर्ण माने गये हैं।।.
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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