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________________ छन्दशतक। NAMA ललिता ( त त ज र) देखो अविद्या घटमें समा रही। . आपा चिदानंद लखै कभी नहीं । जाके सुनें आपखरूपको गही। आनंदकारी ललिता कथा वहीं ॥ ४५ ॥ मंजुभाषिणी ( स ज स ज ग) प्रमदा प्रवीन व्रतलीन पाविनी। दिढ़ शीलपालि कुलरीतिराखिनी । जलअन्न शोधि मुनिदानदायिनी ॥ वह धन्य नारि मृदुमंजुभाषिनी ॥ वसन्ततिलका (त भ ज ज ग ग) श्रीद्रोणजा जनकजादि रमासमानी। धेरै सभी भरतको रितुराज ठानी ।। कीनों अनेक मनलोभनको उपायो। तो भी वसंत तिल काम नहीं सतायो। चक्र ( भ न न न ल ग) श्रीजिनमुख निरखत दुख टरहीं। पाय अमित वित भवि मुख भरहीं। किसी ने तगण भगण जगण रगणका ललितायत माना है। - - -
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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