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________________ वृन्दावनविलास AVAVVVVVV पापविधन तित किहि विधि जुरहीं। चक्र धरम निवसत प्रभु पुरहीं। अचलधृत (५ नगण और १ लघु) करमभरमवश भमत जगत नित । सुरनरपशुतन धरत अमित तित ॥ सकल अथिर लखि परवश परकृत। धरम रतन जिनमनित अचलधृत ॥ प्रहरनकलिका (नन मन लग) यह जिनवरका घरमरतन हो। सुरगमुकतका सुखद सदन हो ॥ तदगतचितसों गहहु शरनको । प्रहरन कलि काटन दुखगनको ।। चामर ( र ज र जर) छत्रतीन सिंहपीठ पुप्पवृष्टि तापरं । अर्द्धमागधी सु गी अशोकवृक्षकावरं । देवदुंदुभी अनूप देहकी प्रभा भरं ।। देखि देवदेवपै दुरति 'बंद' चामरं ।। uni नराच ( ज र ज र ज ग) १ मे तुण तथा सोमवल्लरी भी करते है।
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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