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________________ वृन्दावनविलास W MAHARAN प्रियंवदा (न म जर) धरम एक शिवहेत है सदा । धरम एक सुरगादि संपदा । । अपर नाहिं तिरलोकमें कदा । मधुर वैन गुरुयों प्रियं वदा।। * प्रमिताक्षरा ( स ज स स) * जब शब्दनीतिजुत न्याय पढ़े । कवितादि ग्रन्थपर प्रीति चढे। । गुरुतै अधीतलखिलौकिकत्यों। कवि वृंद होत प्रमिताक्षरयों। तामरस (न जज य) | जिनपदपूजत मंगल हूजे । जिनपद पूजत वांछित पूजे । " जिनपदमें कमला अनुरागी । जिनपद तामरसे मन पागी ॥ . सुंदरी ( न भ भ र) सुव्रतशीलविभूषित जो नरी । जिन जजै वर भाव भरी खरी ।। वह वरै सुरइंद मुकुंदरी । जगतपावन सो तिय सुंदरी ॥ वंशस्थविल तथा इन्द्रवंशा (जत जर) श्रीरामश्रीलक्ष्मणजानकी सती। विलोकि पीड़ा गुरुदेवको अती ॥ तुरंत धन्वा धुनि निकंदितं । योगीन्द्रवंशस्थ विलोकि वंदितं ॥१४॥ - - A - . पंक्ति । २ इसे इनविलयिन भी करते है।
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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