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________________ वृन्दावनविलास राम ( से ग) जपि नामं । सुखधाम । जिनशामं । अमिरामं ॥७॥ - - - - नायक (सलल) सबलायक । गुन छायक। सुखदायक | जिननायक ॥ ८॥ - - - - चउवंशा (न य) धरम सुअंशा । जग अवतंशा। मुनि परशंसा वर । चउवंशा॥९॥ .2 .. s cres सूर (तमल) नारीनके जे नैन । ते तीर तीखे ऐन । जाको न वेधे कूर । सोई बड़ो है सूर ॥ १० ॥ -sank- क्रीड़ा (य र ग ग) अहो भौपीरके हर्ता । अहो कल्यानके कर्ता। हमारी मेटिये पीड़ा । अतींद्रीमें करों क्रीड़ा ॥११॥ 4-Ramdake १ ससे सगण और गसे गुरु समझना चाहिये। इसी प्रकार मन भय जर स त गल से मगण, नगण, भगण, यगण, जगण, रगण,सगन तगण गुरु और लघुका अभिप्राय है। इसे शशिवदना, चारमा और पादाकुलक भी कहते हैं।
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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