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________________ छन्दशतक। ८१ अथ वर्णछन्द लिख्यते। श्रीछन्द (१ वर्ण) 'दे। मे। ही। श्री ॥ १॥ मधुछन्द (२ वर्ण) जिन । धुन । सधु । मधु ॥ २ ॥ महीछन्द (२ वर्ण) जैती । गती । वही । मही ॥३॥ मंदरछन्द (वर्ण ३, भगण) कंदर । अंदर । सुंदर । मंदर ॥१॥ हरिछन्द (वर्ण ४ न ल) अरचत । परचत । जिनवर । हरि हर ॥ ५ ॥ धारि (रल) जैन जानि । मोह भानि । भर्म हारि । धर्म धारि॥६॥ १ हे भगवन् ! मुझे लक्ष्मी दो और लज्जा भी दो । २ पृथ्वीमें यति(मुनि) की गति 'वही' अर्थात् मोक्ष है । ३ कन्दराके भीतर सुन्दर म-* "न्दिर बना हुआ है । ४ इन्द्र और हर जिनेन्द्रदेवकी अर्चा (पूजा)। करते हैं और इनसे परिचय करते हैं।
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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