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________________ वृन्दावनविलास MRAN M (चार रगन ) लक्ष्मीधरा छन्द । SIS SIS SIss is जग्गमें तैग्ग जो चार घाती हरा। राग संचार जाके न होवे खरा ॥ सो जिनाधीश निर्दोष शोभा भरा। बाह्य आभ्यंतरे छंद लक्ष्मीधरा ॥६॥ (चार सगन ) तोटक छन्द । 15155115 गन चार सभेद समाथित ही। ___तजि वैर प्रमोद भरें हित ही ॥ जिनगंधकुटीजुत है जित ही। मम तो टक लागि रह्यो तित ही ॥७॥ (चार जगन) मोतीदाम छन्द । ISIS ||5|| जिनेसुरको मुद-मंगल-धाम । जहां चहुँ देव जति ललाम ॥ प्रलंबित द्वारनिमें अमिराम । अमोलमणीजुत मोतियदाम ॥८॥ इति गणछन्दवर्णन । - . १ इसे स्रग्विणी, लक्ष्मीधर, शृगारिणी, और कामिनीमोहन भी कहते है। २ जगतमें। ३तग्ग अर्थात् तज्ञ (पडित)।
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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