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________________ प्रकीर्णक। तहाँ पक्षियोंका पती भी रहातौ। तहाँतै कभी ना भुजंगप्रयातौ ॥ ३ ॥ (पांच मगन ) सारंगी तथा चित्री छन्द । SS SS SS SS SS SSSSS पाँचोंहीसे नाता जोरे तामें मग्नामांचा है। ताही सेती नाता तोरै सोई ज्ञाता सांचा है ॥ आपाहीमें सांचै राचे आपाहीको है रंगी। सो ही वेवै आपामाही चित्रा वाजा सारंगी॥ % 3D (चार तगन ) मैनावली छन्द । SS ISS is SIS SI चोरों तरके जिते देवके भेव । जैनद्रहीकी करें प्रीतिसो सेव ।। भै टारिवेकी यही जासकी टेव । मैं नाव लीनों मुझे तारि हे देव ॥ ५॥ * १ भुजंगप्रयात उन्द और भुजग अर्थात् सर्प वहांसे नहीं भागते । है। मरे कविनीने ३ भगण और २ यगणके छन्दको चित्रा नाना । ३ "पांचों नगा" अर्थात् पाच मगण । पक्षमें पांचाहीसे अर्थान् । पोनों इशियोंने समाना चाहिये। ४ अनेक कवियों ने इसे सारंगत। माना है।५ गार गण।
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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